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रमला
 


साजन झील की ओर मुँह किये पुकार रहा है---'रानी! रानी!'--- उसका कण्ठ गद्गद् है। चाँदनी आज निखर पड़ी थी। रमला ने सुना। साजन के स्वर में रुदन था; व्याकुलता थी। रमला ने उसके कन्धे पर हाथ रख दिया---साजन सिहर उठा। उसने कहा---"कौन रमला!"

"रमला नहीं-रानी।"

साजन विस्मय से देखने लगा। उसने पूछा---"तुम रानी हो?"

"हाँ, मुझी को तो तुम पुकारते थे न?"

"तुम्हीं तुम्हीं......हाँ तुम्हीं को तो मेरी प्यारी रानी।"

दोनों ने देखा, आकाश के नक्षत्र रमला झील में डुबकियाँ ले रहे थे, और खिलखिला रहे थे।

कितना समय बीत गया---

साजन की सब सोई वासनायें जाग उठीं---भूले हुए पाठ की तरह अच्छे गुरु के सामने स्मरण होने लगी थीं!

उसे अब शीत लगने लगा---रमला के कपड़ों की आवश्यकता वह स्वयं अनुभव करने लगा।

अकस्मात् एक दिन रमला ने कहा---"चलो कहीं घूम आँवें"

साजन ने भी कह दिया---"चलो।"

वही गिरिपथ, जिसने बहुत दिनों से मनुष्य का पद-चिह्न

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