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देवदासी
 


पुनश्च--

मुझे विश्वास है कि मेरा पता जानने के लिये कोई उत्सुक न होगा। फिर भी सावधान! किसी पर प्रकट न करना।

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१०---२---२५


प्रिय रमेश!

रहा नहीं गया! लो सुनो--मन्दिर देख कर हृदय प्रसन्न हो गया। ऊँचा गोपुरम; सुदृढ़ प्राचीर, चौड़ी परिक्रमायें और विशाल सभा-मण्डप भारतीय स्थापत्य-कला के चूकान्त निदर्शन है। यह देव मन्दिर हृदय पर गम्भीर प्रभाव डालता है। हम जानते हैं कि तुम्हारे मन में यहाँ के पण्डों के लिये प्रश्न होगा, फिर भी वे उत्तरीय भारत से बुरे नहीं हैं। पूजा और आरती के समय एक प्रभावशाली वातावरण हृदय को भारावनत कर देता है।

मैं कभी-कभी एकटक देखता हूँ---उन मन्दिरों को ही नहीं, किन्तु उस प्राचीन भारतीय संस्कृति को, जो सर्वोच्च शक्ति को अपनी महत्ता, सौन्दर्य्य और ऐश्वर्य्य के द्वारा व्यक्त करना जानती थी। तुमसे कहूँगा यदि कभी रुपये जुटा सको तो एक बार दक्षिण के मन्दिरों को अवश्य देखना, देव-दर्शन की कला यहाँ देखने में आती है। एक बात और है, मैं अभी बहुत दिनों

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