पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/१०१

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हुआ। उसने घर-बार सब छोड़ दिया और एक देव-मन्दिर में जाकर तपस्वियों के समान जीवन बिताने लगी। अन्त में उसके विचारों की विजय हुई। छः मास बाद दोनों का विवाह हो गया। अवस्था भेद के कारण पत्नी अपने पति की शिष्या के समान जान पड़ती थी, परन्तु मादाम रोलॉ को इस विवाह से बड़ी प्रसन्नता थी। उनकी दृष्टि में विवाह नैसर्गिक और पवित्र बंधन था, जहाँ दो आत्माओं का मिलन होता है।

विवाह के बाद मादाम रोला अपने पति के साथ एमिन्स नगर में रहने लगी। पति की सेवा-सुश्रुषा में ही उसका सारा समय बीतता था। वह अपने पति का बड़ा सम्मान करती थी। वह स्वयं ही उसको पौष्टिक भोजन बनाकर खिलाया करती। विवाह के दो वर्ष बाद उनके यहाँ एक पुत्री का जन्म हुआ। कुछ वर्ष उपरान्त रोलॉ अपने गांव लियोन्स में रहने लगा। वहाँ पर मादाम रोलॉ ने आसपास के ग्रामीण कृषकों से परिचय किया। समय-समय पर वह उनकी सहायता भी करती और उनके घर जाकर स्वयं औषधि का प्रबन्ध कर आती। पिता के घर पर औषधि-सम्बन्धी कुछ ज्ञान उसने प्राप्त कर लिया था। दूर-दूर के गाँवों से लोग रोगी की औषधि कराने उसको लिवा ले जाते। रविवार के दिन बहुत से किसान अपनी-अपनी तुच्छ भेंट देने के लिये उसके घर आते थे। इन भोले-भाले किसानों की सादगी और पवित्रता पर वह मुग्ध हो गई थी।

इन्हीं दिनों फ्रांस में राज्य-क्राँति आरम्भ हो गई। पेरिस की घटनाओं के समाचार मादाम रोलॉ के कानों में पड़े। उसे विश्वास हो गया कि इस क्रांति से मनुष्य-समाज का उद्धार होगा, श्रमिक लोगों के दुःख दूर होंगे और एक नवीन युग का आरम्भ होगा। मादाम रोलॉ के हृदय में अग्नि प्रज्वलित हो गई। अपना कर्तव्य पालन करने के लिये वह भी उद्यत हो उठी। उसने पति से अपने विचार कहे। दोनों के समान विचार थे। एक बार रोलॉ नगर-समिति की ओर से परिषद् में उपस्थित होने के लिये पेरिस गया। साथ में उसकी पत्नी भी थी। पेरिस में बहुत शीघ्र अनेक मनुष्य मादाम रोलॉ के अनुयायी हो गये। ब्रिसो, पितियन, बूजो और रोब्सपीयर का उस समय बड़ा जोर था। ये सब मादाम रोलॉ के स्थान पर इकट्ठे हो-होकर राज्य की स्थिति पर विचार किया करते थे। ये लोग फ्रांस में प्रजा-

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