तन्त्र शासन-विधान स्थापित करना चाहते थे। इन लोगों ने समय पड़ने पर एक-दूसरे की सहायता करना निश्चय कर लिया। इस निश्चय पर अन्य सब मनुष्य तो दृढ़ न रहे, परन्तु मादाम रोलॉ ने अपनी बात का पालन किया। एक बार जब रोब्सपीयर का जीवन संकट में पड़ गया तो मादाम रोलॉ ने ही अपने यहाँ आश्रय देकर उसको बचाया था। कार्य की समाप्ति पर दोनों पति-पत्नी लियोन्स लौट आए, परन्तु मादाम रोलॉ वहाँ न रह सकी। वहाँ रहकर वह देश-हित के कार्य में योग नहीं दे सकती थी।
खूब सोच-विचार के बाद दिसम्बर मास में दोनों पति-पत्नी फिर पेरिस लौट आए।
इस बार मादाम रोलॉ ने बड़े उत्साह से कार्य आरम्भ किया। उसका सब समय राजनैतिक कार्यक्रम की पूर्ति में बीतने लगा। फ्रांस में प्रजातन्त्र शासन-विधान प्रचलित करना ही उसका उद्देश्य था। उसने अपने विचार उस समय के प्रमुख और प्रसिद्ध मनुष्यों पर प्रकट किये। उसके नेत्रों में आकर्षण था और वाणी में माधुर्य। उसके तेजस्वी मुख को देखकर किसी को भी उसका विरोध करने का साहस न होता था। कुछ ही समय में उसने अपने अनेक अनुयायी बना लिये। इसी समय गिरोण्डिस्ट दल ने शासन-सूत्र अपने हाथ में कर लिया और रोलॉ की अध्यक्षता में मन्त्रिमण्डल का निर्माण किया।
रोलॉ को राज्य-सम्बन्धी कार्यों में अपनी पत्नी से बड़ी सहायता मिलती थी। जिन गुत्थियों को सुलझाने में उनकी बुद्धि चकरा जाती, उन सबको मादाम रोलॉ शीघ्र ही ठीक कर दिया करती थी। वह मनुष्य की परख बड़ी जल्दी कर लेती थी। कई बार उसने अपने पति को अपने सहकारियों से सचेत रहने के लिये कहा था।
'दुमरो' नामक व्यक्ति को देखकर उसने अपने पति से कहा- "इस मनुष्य पर अपनी दृष्टि रखना, यह बड़ा भयंकर आदमी है। समय आने पर यह आपको मन्त्रिमंडल से बाहर निकाल देगा।"
रोलॉ की लापरवाही से भविष्य में ऐसा ही हुआ, परन्तु मादाम रोलॉ के कारण गिरोण्डिस्ट-दल परिषद् में अपना पैर जमाए रहा। नित्य प्रति उसके स्थान पर इन लोगों की बैठक हुआ करती, कार्यक्रम, साधन आदि
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