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पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/१०४

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परिषद्-भवन के समीप मादाम रोलॉ ने कुछ मनुष्यों के मुख से सुना कि गिरोण्डिस्ट दल के बाईस मनुष्य शीघ्र ही गिरफ्तार किए जाएँगे, उनमें वह भी शामिल थी। वह खिन्न मन से घर लौट आई। उसने अपनी सोई हुई पुत्री को छाती से लगाकर बार-बार चूमा । मृत्यु से उसको किसी प्रकार भय न था। मृत्यु को वह चिर-शांति का आश्रय समझती थी, परन्तु इस बालिका का मोह उसको सता रहा था। उसने अपने एक मिन्न के यहाँ उसको छोड़ने का विचार किया। एक पत्र अपने पति के नाम लिखकर वह सो रही, परन्तु थोड़ी देर में द्वार तोड़कर कुछ पुलिस कर्मचारी उसके घर में घुस आए। उन्होंने उसको गिरफ्तार कर लिया। मादाम रोलॉ को अपने पति के सुरक्षित होने से बड़ी प्रसन्नता हुई। अपने भृत्य को कन्या के संबंध में कुछ बातों का आदेश देकर मादाम रोलॉ कर्मचारियों के साथ हो ली।

एक कर्मचारी ने उससे पूछा-"क्या गाड़ी की खिड़कियाँ बन्द कर दूंँ?"

उसने कहा-"कदापि नहीं, मैंने कोई अपराध नहीं किया है, मुझे कोई लज्जा नहीं जो अपना मुँह ढाँकती फिरूँ।"

कर्मचारी ने उससे फिर कहा-"आप में मनुष्यों से अधिक साहस है, आप शांति और धैर्य से न्याय की प्रतीक्षा कीजिए।"

रोलॉ हँसी और कहने लगी-"न्याय! न्याय होता तो मैं आज यहाँ न होती। मैं निर्भय चित्त से फांसी के तख्ते पर चढूंगी। मुझे अब जीवन से घृणा हो गई है।"

गाड़ी कारागार के समीप खड़ी हो गई। मादाम रोलॉ को एक कोठरी में बन्द कर दिया गया।

परन्तु कारागार में भी कर्मचारियों ने उसके लिए बहुत-सी बातों की सुविधा कर दी। फल, फूल, पुस्तक, कलम, दवात, कागज, सभी चीजें उसे उपलब्ध थीं। कुछ खास मनुष्य उससे मिलने के लिए आते थे। कारागार में मादाम रोलॉ ने अपनी आत्मकथा लिखी और प्रहरियों की दृष्टि से छिपा-कर उसे अपने एक मित्र बोस्क को दे दी। यह व्यक्ति कभी-कभी मादाम रोलॉ से मिलने आया करता था। कुछ दिनों बाद मादाम को वहाँ से एक दूसरे कारागार में हटा दिया गया, जहाँ उसको नगर की दुराचारिणी

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