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पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/१२६

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था। निजाम सबसीडीयरी सेना के जाल में फंस चुका था, और पेशवा के पीछे सिन्धिया को लगा दिया था। पर प्रकट में दोनों ओर से मित्रता और प्रेम के पत्रों का भुगतान हो रहा था। अन्त में सन् १७६६ की ६ जनवरी को हठात् टीपू को वेलेजली का एक पत्र मिला, उसमें लिखा था-"अपने समुद्र-तट के समस्त नगर अंग्रेजों के हवाले कर दो, और २४ घण्टे के अन्दर जवाब दो।"

३ फरवरी को अंग्रेजी फौजें टीपू की ओर बढ़ने लगीं। परन्तु टीपू युद्ध को तैयार न था। उसने सन्धि की बहुत चेष्टा की, पर वेलेजली ने कुछ भी ध्यान न दिया। जल और थल दोनों ओर से टीपू को घेर लिया गया था। गुप्त साजिशों से बहुत से सरदार फोड़े जा चुके थे। अंग्रेजों के पास कुल तीस हजार सेना थी।

प्रारम्भ में टीपू ने अपने विश्वस्त सेनापति पुर्णियाँ को मुकाबले में भेजा। पर वह विश्वासघाती था। वह अंग्रेजी फौज के इधर-उधर चक्कर लगाता रहा और अंग्रेजी सेना आगे बढ़ती चली आई। यह देख, टीपू ने स्वयं आगे बढ़ने का इरादा किया। पर विश्वासघातियों ने उसे धोखा दिया और उसकी सेना को किसी और ही मार्ग पर ले गये। उधर अंग्रेजी सेना दूसरे ही मार्ग से रंगपट्टन आ रही थी। पता लगते ही टीपू ने पलटकर गुलशनबाद के पास अंग्रेजी सेना को रोका। कुछ देर घमासान युद्ध हुआ। सम्भव था, अंग्रेजी सेना भाग खड़ी होती-पर उसके सेनापति कमरुद्दीनखाँ ने दगा दी, और उलटकर टीपू की ही सेना पर टूट पड़ा। इस भाँति अंग्रेज विजयी हुए।

इसी बीच में टीपू ने सुना कि एक भारी सेना बम्बई की तरफ से चली आ रही है। टीपू वहाँ कुछ सेना छोड़, उधर दौड़ा, और बीच में ही उस पर टूटकर उसे भगा दिया। परन्तु उसके मुखबिर और सेनापति सभी विश्वासघाती थे। टीपू को वे बराबर गलत सूचना देते थे। ज्योंही टीपू लौटकर रंगपट्टन आया कि अंग्रेजी सेना ने शहर घेरकर तोपों से आग बरसाना शुरू कर दिया।

टीपू ने सेनायें भेजीं। पर सेनापतियों ने युद्ध के स्थान पर चारों ओर चक्कर लगाना शुरू कर दिया। अंग्रेज फतह कर रहे थे और टीपू को गलत खबरें मिल रही थीं। क्रोध में आकर टीपू ने तमाम नमकहरामों की सूची

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