बनाकर एक विश्वस्त कर्मचारी को दी, और कहा-"इन्हें रात को ही कत्ल कर दो।" पर एक फर्राश की नमकहरामी से फण्डाफोड़ हो गया।
उसी दिन टीपू घोड़े पर चढ़कर किले की फसीलों का निरीक्षण करने निकला, और एक फसील पर अपना खेमा लगवाया।
ज्योतिषियों ने उससे कहा था-"आज का दिन दोपहर की सात घड़ी तक आपके लिए शुभ नहीं।"
उसने ज्योतिषियों की सलाह से स्नान किया, हवन-जप भी किया, और दो हाथी-जिन पर काली झूलें पड़ी थीं-और जिनके चारों कोनों में सोना, चाँदी, हीरा, मोती बँधे थे, ब्राह्मण को दान दिये, गरीबों को भी अटूट धन दिया। इसके बाद वह भोजन करने बैठा ही था, कि सूचना मिली-किले के प्रधान संरक्षक अब्दुलगफ्फारखाँ को कत्ल कर डाला गया है। टीपू तत्काल उठ खड़ा हुआ, और घोड़े पर सवार हो, स्वयं उसका चार्ज लेने किले में घुस गया। कुछ खास-खास सरदार साथ में थे।
उधर विश्वासघातियों ने सैयद गफ्फार को खत्म करते ही सफेद रूमाल हिलाकर अंग्रेजी सेना को संकेत कर दिया। यह देख, टीपू के सावधान होने से प्रथम ही दीवार के टूटे हिस्से से शत्रु के सैनिक किले में घुस गये।
एक नमकहराम सेनापति मीरसादिक यह खबर पा, सुल्तान के पीछे गया और जिस दरवाजे से टीपू किले में गया था, उसे मजबूती से बन्दकरवाकर दूसरे दरवाजे से मदद लेने के बहाने निकल गया। वहाँ वह पहरेदारों को यह समझा ही रहा था कि, मेरे जाते ही दरवाजा बन्द कर लेना और हरगिज न खोलना, कि एक वीर ने जो उसकी नमकहरामी को जानता था, कहा-"कम्बख्त मलऊन! सुलतान को दुश्मनों के हवाले करके यों जान बचाना चाहता है। ले, यह तेरे पापों की सजा है।" कहकर खट् से उसके दो टुकड़े कर दिये।
पर टीपू अब फंस चुका था। जब वह लौटकर दरवाजे पर गया, तो उसी के बेईमान सिपाही ने दरवाजा खोलने से इन्कार कर दिया। अंग्रेजी सेना टूटे हिस्से से किले में घुस चुकी थी। हताश हो, वह शत्रुओं पर टूट पड़ा। पर कुछ ही देर में एक गोली उसकी छाती में लगी। फिर भी वह अपनी बन्दूक से गोलियाँ छोड़ता ही रहा। पर फिर और एक गोली उसकी
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