पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/१५३

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उन्नीस

सर जॉन केमार तीसरे अंग्रेज-गवर्नर थे। उन्होंने अवध के नवाब की पुरानी संधि को तोड़ डाला, और नवाब पर जोर दिया कि आप साढ़े पाँच लाख रुपया सालाना खर्च पर एक अंग्रेजी पल्टन अपने यहाँ और रखें। नवाब 'सबसीडियरी सेना' के लिए पचास लाख रुपया सालाना प्रथम ही देता था। उसने इससे इन्कार कर दिया। तब अंग्रेजों ने जबर्दस्ती वजीर झाऊलाल को पकड़कर कैद कर लिया। पीछे जब सर जॉन शोर लखनऊ पहुंचे तो नई फौज का खर्चा नवाब के सिर मढ़ दिया गया।

इस धींगा-मुश्ती से नवाब के दिल को सदमा पहुँचा। वह बीमार हो गया और दवा खाने से भी इन्कार कर दिया। इसी रोग में उसकी मृत्यु हो गई।

उसने २३ वर्ष राज्य करके शरीर त्यागा। उसकी वसीयत पर मिरजा वजीरअली गद्दी पर बैठे। पर उन्होंने एक ही वर्ष में सबको नाराज कर दिया। अंत में ईस्ट-इण्डिया कम्पनी ने उन्हें बनारस में नजरबन्द कर दिया। वहाँ उन्होंने विद्रोह की तैयारियां कीं, तो अंग्रेजों ने उन्हें कलकत्ता बुलाया।

जब रेजीडेण्ट मि० चोरी उन्हें यह संदेश देने गये, तो बात बढ़ चली और नवाब ने अपनी तलवार निकालकर चोरी साहब को कत्ल कर दिया। मेम साहब भागकर बच गईं।

कत्ल करने के बाद मिरजा नेपाल के जंगलों में भेष बदले मुद्दत तक फिरते रहे। अंत में नगर के राजा के विश्वासघात से गिरफ्तार किये गये, और लखनऊ में उन पर कत्ल का मुकद्दमा चला। पर कोई गवाह न मिलने से फाँसी से बच गये। इसके बाद उन्हें दुबारा कलकत्ते में कैद कर लिया गया, जहाँ वह २६ वर्ष की आयु में मृत्यु को प्राप्त हुए।

इनके बाद नवाब आसफउद्दौला के भाई सआदतअलीखाँ गद्दीनशीन हुए। उस समय उनकी उम्र ६० वर्ष की थी। वे बड़े बुद्धिमान, दूरदर्शी, ईमानदार और योग्य शासक थे। पर, लोग उन्हें कंजूस कहा करते थे;

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