पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/१६

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जिस समय नवाब की सेना कलकत्ते की तरफ आ रही थी, तो अमीचन्द के मित्र राजा रामसिंह ने गुप्त रूप से एक पत्र लिखकर अमीचन्द को चेता दिया था कि "तुम सुरक्षित स्थान में चले जाओ तो अच्छा है।" दैवयोग से यह पत्र अंग्रेजों के हाथ लग गया। बस, इसी अपराध पर धीर-वीर अंग्रेजों ने अमीचन्द को पकड़कर कैदखाने में लूंस देने का हुक्म अपनी फौज को दिया। अमीचन्द को इस विपत्ति की कुछ खबर न थी। एकाएक फौज ने उसे गिरफ्तार कर लिया, और अभियुक्तों की तरह बाँधकर ले चली। कलकत्ते के देशी लोगों में इस घटना से हाहाकार मच गया।

अमीचन्द का एक सम्बन्धी, जो सारे कारबार का प्रबन्धक था, अत्याचार से डरकर स्त्रियों को कहीं सुरक्षित स्थान में पहुँचाने का बन्दोबस्त करने लगा। अंग्रेजों ने जब यह सुना, तो अमीचन्द के घर पर धावा बोल दिया। अमीचन्द के यहाँ जगन्नाथ नामक एक बूढ़ा विश्वासी जमादार था। वह जाति का क्षत्रिय था। वह तत्काल अमीचन्द के नौकर बरकन्दाजों को इकट्ठा करके महल के फाटक पर रक्षा करने को कमर कसकर तैयार हो गया। अंग्रेजों ने आकर फाटक पर लड़ाई-दंगा शुरू कर दिया। दोनों पक्षों की मार-काट से खून की नदी बह निकली। अन्त में एक-एक करके अमीचन्द के सिपाही धराशायी हुए। मानुषिक-शक्ति से जो सम्भव था, हुआ। अंग्रेज बड़े जोरों से अन्तःपुर की ओर बढ़ने लगे। बूढ़े जगन्नाथ का पुराना क्षत्रिय-रक्त गर्म हो गया। जिन आर्य-महिलाओं को भगवान भुवन-भास्कर भी नहीं देख सकते थे, वे क्या विदेशियों द्वारा दलित होंगी? स्वामी के परिवार की लज्जावती कुल-कामिनियाँ भी क्या बाँधकर विधर्मियों की बन्दी की जायेंगी?

बस, पल-भर में बिजली तरह तड़पकर उसने इधर-उधर से टूटे-फूटे काठ किवाड़ और लकड़ी एकत्र कर आग लगा दी और नंगी तलवार ले, अन्तःपुर में घुस गया, तथा एक-एक कर १३ महिलाओं के सिर काट-काटकर आग में डाल दिए। अन्त में पतिव्रताओं के खून से लाल-वही पवित्र तलवार अपनी छाती में खोंस ली, और उसी रक्त की कीचड़ में गिर पड़ा।

देखते-ही-देखते आग और धुएँ का तूफान उठ खड़ा हुआ। बड़ी

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