पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/१७

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कठिनता से जगन्नाथ को सिपाहियों ने उठाकर कैद किया-उसके प्राण नहीं निकले थे। पर अंग्रेजों को भीतर घुसने का समय न मिला-धाँय-धाँय करके वह विशाल महल जलने लगा।

नवाब हुगली तक आ पहुँचा। गंगा की धारा को चीरती हुई सैकड़ों सुसज्जित नावें हुगली में जमा होने लगीं। डच और फ्रांसीसी सौदागरों ने नवाब से निवेदन किया कि 'योरोप में अंग्रेजों से सन्धि होने के कारण वे इस लड़ाई में शरीक नहीं हो सकते हैं।' नवाब ने उनकी इस नीति-युक्त वात को स्वीकार कर, उनसे गोला-बारूद की सहायता ले, उन्हें विदा किया।

नवाब के कलकत्ते पहुँचने की खबर बिजली की तरह फैल गई। अंग्रेज लोग किले में घुसकर फाटक बन्द कर, बैठे रहे। जिसको जिधर राह सूझी, भाग निकला। रास्तों, घाटों, जंगलों और नदियों के किनारों में दल-के-दल स्त्री-पुरुष कुहराम मचाते भागने लगे। पर सबसे अधिक दुर्दशा उन अभागों की हुई थी, जिन्होंने काले चमड़े पर टोप पहनकर अपने धर्म को तिलांजलि दी थी। इनसे देशवासी भी घृणा करते थे, और अंग्रेज भी निदान। उन्हें कहीं सब स्त्री, बच्चे, बूढ़े इकट्ठे होकर किले के द्वार पर सिर पीटने लगे। अन्त में उनके आर्तनाद से निरुपाय होकर अंग्रेजों ने उन्हें भी किले में आश्रय दिया।

नवाब की वृहदाकार तोपें भीषण गर्जन द्वारा जब अपना परिचय देने लगी, तो अंग्रेजों के छक्के छूट गये। उन्होंने अब भी मायाजाल फैलाने, घूस, देने, नजर-भेंट देने की बहुत चेष्टा की, पर नवाब ने इरादा नहीं बदला। उसका यही हुक्म था कि किला अवश्य गिराया जायेगा।

फोर्ट विलियम किला पूर्व की ओर २१० गज, दक्षिण की ओर १३० गज और उत्तर की ओर सिर्फ १०० गज था। मजबूत चहारदीवारी के चारों कोनों पर चार बुर्ज थे। प्रत्येक पर १० तोपें लगी थीं। पूर्व की ओर विशाल फाटक पर ५ वृहदाकार तोपें मुँह फैला रही थीं। इसके पश्चिम की ओर गंगा की प्रबल धारा समुद्र की ओर बह रही थी। पूरब की ओर फाटक के पास से गुजरती हुई लाल बाजार की सीधी और सुन्दर सड़क बलिया-घाट तक चली गई थी। इस किले पर पूर्व, उत्तर और दक्षिण की ओर तोपों के तीन मोर्चे और भी थे । कलकत्ते के तीन ओर मराठा-खाई थी। दक्खिन

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