पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/१६१

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इसके वस्त्र अस्त-व्यस्त थे। इसका मोती के समान उज्ज्वल रंग, कामदेव को मात करने वाला प्रदीप्त सौंदर्य, झब्बेदार मूंछे, रसभरी आँखें और मदिरा से प्रस्फुरित होंठ कुछ और ही समा बना रहे थे। सामने पानदान में सुनहरी गिलौरियाँ भरी थीं। इत्रदान में शीशियाँ लुढ़क रही थीं। शराब की प्याली और सुराही क्षण-क्षण पर खाली हो रही थी। वह सुगंधित मदिरा मानो उसके उज्ज्वल रंगपरसुनहरी निखार ला रही थी। उसके कंठ में पन्ने का एक बड़ा-सा कंठा पड़ा था और उँगलियों में हीरे की अंगूठियाँ बिजली की तरह दमक रही थीं। यही लाखों में दर्शनीय पुरुष लखनऊ के प्रख्यात नवाब वाजिदअलीशाह थे।

कमरे में कोई न था। वे बड़ी आतुरता से किसी की प्रतीक्षा कर रहे थे। यह आतुरता क्षण-क्षण बढ़ रही थी। एकाएक एक खटका हुआ। बादशाह ने ताली बजाई और वही लंबी स्त्री-मूर्ति, सिर से पैर तक काले वस्त्रों से शरीर को लपेटे, मानो दीवार फाड़कर आ उपस्थित हुई।

"ओह मेरी गबरू! तुमने तो इंतजारी ही में मार डाला। क्या गिलौरियाँ लाई हो?"

"मैं हुजूर पर कुर्बान।" इतना कहकर उसने वह काला लबादा उतार डाला। उफ, गजब! उस काले आवेष्ठन में मानो सूर्य का तेज छिप रहा था। कमरा चमक उठा। बहुत बढ़िया चमकीले विलायती साटन की पोशाक पहने एक सौंदर्य की प्रतिमा इस तरह निकल आई, जैसे राख के ढेर में से अंगार। इस अग्नि-सौंदर्य की रूप-रेखा कैसे बयान की जाए? इस अंग्रेजी राज्य और अंग्रेजी सभ्यता में जहाँ क्षणभर चमककर बादलों में विलीन हो जाने वाली बिजली सड़क पर अयाचित ढेरों प्रकाश बिखेरती रहती है, इस रूप-ज्वाला की उपमा कहाँ ढूंढी जाए? उस अंधकारमय रात्रि में यदि उसे खड़ा कर दिया जाए तो वह कसौटी पर स्वर्ण-रेखा की तरह दिप उठे; और यदि वह दिन के ज्वलंत प्रकाश में खड़ी कर दी जाए तो उसे देखने का साहस कौन करे? किन आँखों में इतना तेज है?

उस सुगंधित और मधुर प्रकाश में मदिरा-रंजित नेत्रों से उस रूप-ज्वाला को देखते ही वाजिदअली की वासना भड़क उठी। उन्होंने कहा-"रूपा, नजदीक आयो। एक प्याली शीराजी और अपनी लगाई हुई अंबरी

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