पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/१६२

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पान की बीड़ियाँ दो तो। तुमने तो तरसा-तरसा कर ही मार डाला।"

रूपा आगे बढ़ी, सुराही से शराब उड़ेली और जमीन में घुटने टेककर आगे बढ़ा दी। इसके बाद उसने चार सोने के वर्क-लपेटी बीड़ियाँ निकालकर बादशाह के सामने पेश की और दस्तबस्ता अर्ज की-“हुजूर की खिदमत में लौंडी वह तोहफा ले आई है।"

वाजिदअली शाह की बाँछें, खिल गईं। उन्होंने रूपा को घूरकर कहा-"वाह! तब तो आज...।" रूपा ने संकेत किया। हैदर खोजा उस फूल-सी मुरझाई-कुसुमकली को फूल की तरह हाथों पर उठाकर, पान-गिलौरी की तश्तरी की तरह बादशाह के रूबरू कालीन पर डाल गया। रूपा ने बाँकी अदा से कहा-"हुजूर, को आदाब"। और चल दी।

एक चौदह वर्ष की भयभीत, मूर्छित, असहाय कुमारी बालिका अकस्मात् आँख खुलने पर सम्मुख शाही ठाठ से सजे हुए महल और दैत्य के समान नरपशु को पाप-वासना से प्रमत्त देखकर क्या समझेगी? कौन अब इस भयानक क्षण की कल्पना करे। पर वही क्षण होश में आते ही उस बालिका के सामने आया। वह एकदम चीत्कार करके फिर बेहोश हो गई। पर इस बार शीघ्र ही उसकी मूर्छा दूर हो गई। एक अतयं साहस, जो ऐसी अवस्था में प्रत्येक जीवित प्राणी में हो जाता है, बालिका के शरीर में भी उदय हो आया। वह सिमटकर बैठ गई, और पागल की तरह चारों तरफ एक दृष्टि डालकर एकटक उस मत्त पुरुष की ओर देखने लगी।

उस भयानक क्षण में भी उस विशाल पुरुष का सौन्दर्य और प्रभा देख कर उसे कुछ साहस हुआ। वह बोली तो नहीं, पर कुछ स्वस्थ होने लगी।

नवाब जोर से हँस दिए। उन्होंने गले का वह बहुमूल्य कंठा उतारकर बालिका की ओर फेंक दिया। इसके बाद वे नेत्रों के तीर निरन्तर फेंकते रहे।

बालिका ने कंठा देखा भी नहीं, छुआ भी नहीं। वह वैसी ही सिकुड़ी हुई, वैसी ही निनिमेष दृष्टि से भयभीत हुई नवाब को देखती रही।

नवाब ने दस्तक दी। दो बाँदियाँ दस्तबस्ता आ हाजिर हुईं। नवाब ने हुक्म दिया, इसे गुस्ल कराकर और सब्जपरी बनाकर हाजिर करो। उस पुरुष-पाषाण की अपेक्षा स्त्रियों का संसर्ग गनीमत जानकर बालिका मंत्र-

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