क्लाइव से अगले दिन मीरजाफर ने इसका जिक्र करके क्षमा मांगी। क्लाइव ने मुस्कराकर कहा- "इसके लिये यदि माफी न मांगी जाती, तो कुछ हर्ज न था।"
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मीरजाफर नवाब हुआ और धूर्त स्क्वेफन उसका एजेण्ट बनकर दरबार में विराजा। वारेन हेस्टिग्स उसका सहायक बनाया गया। कुछ दिन बाद जब स्क्वेफन कौंसिल में सभ्य नियत हुआ-तब, उक्त गौरव का पद वारेन हेस्टिग्स को मिला। यह पद बड़ी जिम्मेदारी का था। एजेण्ट के ऊपर दो बातों की कठिन जिम्मेदारियाँ थीं-एक यह कि कम्पनी की आय और उसके स्वार्थ में विघ्न न पड़े। दूसरे, नवाव कहीं सिर उठाकर सबल न हो जाय। नवाब यदि वेश्याओं और शराब में अधिकाधिक गहराई में लिप्त हो, तो एजेण्ट को कुछ चिन्ता न थी। उनकी चिन्ता का विषय सिर्फ यह था कि कहीं नवाब सैन्य को तो पुष्ट नहीं कर रहा है? राज्य-रक्षा की तरफ तो उसका ध्यान नहीं है?
इन सबके सिवा जाफर ने नकद रुपया न होने पर सन्धि के अनुसार अंग्रेजों को कुछ जागीरें दी थीं। उनकी मालगुजारी वसूली का भी उसी पर भार था। साथ ही, फ्रांसीसियों की छूत से नवाब को सर्वदा बचाना भी आवश्यक था। हेस्टिग्स ने बड़ी मुठमर्दी से उक्त पद के योग्य अपनी योग्यता प्रमाणित की।
पर मीरजाफर देर तक नवाब न रह सका। लोगों से वह घमण्डपूर्ण व्यवहार और झगड़े करने लगा। मुसलमान-हिन्दू, सब उससे घृणा करते थे। उधर अंग्रेजों ने रुपये के लिये दस्तक भेज-भेजकर उसका नाक-दम कर दिया। मीरजाफर को प्रतिक्षण अपनी हत्या का भय बना रहता था। निदान, तीन ही वर्ष के भीतर मीरजाफर का जी नवाबी से ऊब गया और अन्त में अंग्रेजों ने उसे अयोग्य कहकर गद्दी से उतार, कलकत्ते में नजर-बन्द कर दिया। उसका दामाद मीरकासिम बंगाल का नवाब बना। जाफर
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