पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/४६

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की पेन्शन नियत की गई।

गद्दी पर अधिकार तो मीरन का था जो मीरजाफर का पुत्र था, पर वहाँ अधिकार की बात ही न थी। वहां तो गद्दी नीलाम की गई थी। अंग्रेज बनियों की पैसे की प्यास भयंकर थी। मीरकासिम ने उसे बुझाया।

अंग्रेजों की अमित धन की मांगों को पूरा करने के लिए नवाबी खजाने में रुपया नहीं था। इसलिये उन्हें अपनी पहले की शर्तों की रकम में से आधा ही लेकर सन्तोष करना पड़ा। इस रकम की भी एक-तिहाई रकम नवाब के सोने-चांदी के बर्तन वेचकर संग्रह की गई, और इस भुगतान के बाद नवाबी खजाने में फूटी कौड़ी न बची थी। मीरकासिम के नवाब होने पर हेस्टिग्स कौंसिल का मेम्बर होकर कलकत्ते आ गया और उसकी जगह पर एलिस साहब एजेण्ट बने। एलिस साहब कलह-प्रिय एवं बहुत ही बुरे आदमी थे, और वे जिस पद पर नियुक्त किये गये थे, उसके योग्य न थे।

नवाब और एजेण्ट की न बनी। बात-बात पर दोनों में झगड़े होने लगा। आखिर तंग आकर नवाब ने कलकत्ते की कौंसिल को लिखा-

"अंग्रेज गुमाश्ते हमारे अधिकार की अवमानना करके प्रत्येक नगर और देहातों में पढदारी, फौजदारी, माल और दीवानी अदालतों की ज़रा भी परवा नहीं करते; बल्कि सरकारी अहलकारों के काम में बाधा डालते हैं। ये लोग प्राइवेट व्यापार पर भी महसूल नहीं देते, और जिनके पास कम्पनी का पास है, वे तो अपने को कर्ता-धर्ता ही समझते हैं। सरकारी और अंग्रेज कर्मचारियों की परस्पर की अनबन का कड़ आ फल प्रजा को चखना पड़ा रहा है, और उस पर असह्य निष्ठुर अत्याचार हो रहे हैं।"

उस समय कम्पनी के कर्मचारियों का केवल यही काम था, कि किसी देशी से सौ-दो-सौ पाउण्ड वसूल करके जितना शीघ्र हो सके, यहाँ की गर्मी से पीड़ित होने से पूर्व ही विलायत लौट जायें और वहाँ किसी कुलीन धनी की कन्या के साथ विवाह कर, कॉर्नवाल में छोटे-मोटे एक-दो गाँव खरीदकर सेण्ट-जेम्स-स्क्वेयर में आनन्दपूर्वक मुजरा देखा करें।

मीरकासिम अपने श्वसुर की तरह नीच, स्वार्थी तथा द्रोही न था। वह सब रंग-ढंग देख चुका था। उसने नवाबी मोल ली थी। वह नवाब ही बनना चाहता था और अंग्रेजों से प्रजा की तरह व्यवहार करना पसन्द

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