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पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/६०

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किन्तु त्रिचिनापल्ली का दृढ़ किला मुहम्मदअली के हाथों में था। त्रिचिनापल्ली में युद्ध हुआ, जिसमें दक्षिण के इन तीनों राजाओं, अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के भाग्य का फैसला हो गया। चन्दासाहब और फ्रान्सीसियों की सेनाएँ एक ओर थीं, मुहम्मदअली और अंग्रेजों की सेनाएँ दूसरी और। एक फ्रान्सीसी सेना इस समय डूप्ले की सहायता के लिए भेजी गई, किन्तु वह कहीं मार्ग में ही डूबकर खत्म हो गई। त्रिचिनापल्ली के संग्राम में फ्रांसीसियों की हार रही। इस युद्ध से अंग्रेज भारत में जम गए और फ्रांसीसी उखड़ गये। फ्रांसीसियों की भारत-विजय की आशा धूल-धूमिल हो गई।

अब अंग्रेजों की कृपा से मुहम्मदअली करनाटक का नवाब बना। इसके बदले में उसने १६ लाख की आय का इलाका अंग्रेजों को दिया। प्रारम्भ में मुहम्मदअली की अंग्रेजों में बड़ी प्रतिष्ठा थी। पर, वह शीघ्र ही बंगाल के नवाबों की भाँति दुरदुराया जाने लगा। उससे नित नई माँगें पूरी कराई जाती थीं, और नवाब को प्रत्येक नये गवर्नर को लगभग डेढ़ लाख रुपये नजर करने पड़े थे। अन्त में इस पर इतने खर्च बढ़ गये कि वह तंग हो गया और अंग्रेजों से जान बचाने का उपाय सोचने लगा। इस समय अंग्रेज व्यापारियों के कर्जे से वह बेतरह दबा हुआ था।

लार्ड कॉर्नवालिस ने नवाब से एक संधि की, जिसके कारण नवाब की तमाम सेना का प्रवन्ध अंग्रेजों के हाथ में आ गया। इसके खर्च के लिये नवाब से कुछ जिले रहन रखा लिये गये। इनकी आमदनी ३० लाख रुपया सालाना थी।

सन् १७६५ में मुहम्मदअली की मृत्यु हुई और उस बेटा नवाब उमदतुलउमरा गद्दी पर बैठा। इस पर गवर्नर ने जोर दिया कि रहन रखे जिले और वह कम्पनी को दे दे। पर उसने साफ इन्कार कर दिया। परन्तु इसी बीच में अंग्रेजों ने प्रतापी टीपू को हरा डाला था और रंगपट्टन का अटूट खजाना उनके हाथ लगा था। उसमें गवर्नर को कुछ ऐसे प्रमाण भी मिले कि जिनमें करनटक के नवाब का टीपू के साथ षड्यन्त्र पाया जाता था। परन्तु नवाब के जीते-जी यह बात यों ही चलती रही। ज्योंही नवाब मृत्यु-शय्या पर पड़ा, कम्पनी की सेना ने महल को घेर लिया कुछ किले

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