पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/९१

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विरुद्ध युद्ध-घोषणा कर दी। लोग और भी जल उठे। राजा के आदर-सूचक चिह्न बन्द कर दिए गए। वह एक साधारण मनुष्य के समान हो गया। प्रजा के प्रति राजा की शुभेच्छाओं के विषय में कितने ही मनुष्य अब भी विश्वास करते थे, परन्तु आत्वानेव के कारण वह कुछ कार्य नहीं कर सकता था। पत्नी से विरुद्ध कार्य करने का उसे साहस न था। प्रजा की दृष्टि में साम्राज्ञी अवगुण, स्वेच्छाचार और विश्वासघात की सजीव प्रतिमूर्ति थी। नगर की स्त्रियां तक उससे घृणा करती थीं।

जब कभी वह राजभवन की खिड़की से बाहर झाँकती तो लोग उसका तिरस्कार करने लगते थे। उसके लिए अपशब्द कहने लगते थे। एक दिन एक मनुष्य अपने भाले की नोक रानी को दिखाकर कहने लगा-"मेरे जीवन में वह दिन शुभ होगा, जब तुम्हारा सिर इस भाले की नोक पर लटकता देख सकूँगा।"

साम्राज्ञी के लिए बाहर की ओर देखना भी अपराध हो गया था।

फ्रांस की परिषद् ने धर्मगुरुओं के विरुद्ध एक कानून बनाया। राजा की इसमें सम्मति नहीं थी। रानी के परामर्श से उसने मन्त्रिमंडल को विघ-टित कर दिया। पेरिस की जनता उत्तेजित हो गई। कुछ वक्ताओं के कहने से उसने राजभवन पर आक्रमण किया।

उपद्रवी पाँच घण्टों तक राजदम्पत्ति का तिरस्कार करते रहे। बहुत सी स्त्रियाँ साम्राज्ञी के कमरे में घुस गई और उसको नाना प्रकार से कष्ट देने लगीं। एक सुन्दरी युवती ने रानी के प्रति कुछ अपशब्द कहे। रानी से चुप न रहा गया। उसने उस युवती से कहा--"तुम मुझसे क्यों घृणा करती हो क्या मैंने अनजान में तुम्हारा कोई नुकसान या अपराध किया है?"

युवती ने उत्तर दिया-"मेरी तो कोई हानि तुमने नहीं की, परन्तु देश की दुर्दशा तुम्हारे ही कारण हुई है।"

रानी ने कहा-"अभागिनी! तुमको किसी ने मेरे विपरीत बहका दिया है। लोगों के जीवन को दुखमय बनाने से मुझे क्या लाभ है? मैं लौटकर अपने देश को नहीं जा सकती, यहाँ रहकर ही मैं सुखी या दुखी रह सकती हूँ। जब तुम लोग मुझसे प्रेम करते थे, मैं परम सुखी थी।"

युवती ने क्षमा मांगी, उसने कहा-"मैं तुम्हें नहीं जानती थी, परन्तु

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