पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

रानी यह समाचार सुनते ही लुई के समीप गई। आधे घण्टे तक सभी प्राणी चुप बैठे रहे, परन्तु उसके बाद रानी के आँसुओं और सिसकियों ने शान्ति भंग कर दी। रानी ने अपने आँसुओं से राजा के चरणों को तर कर दिया। दो घण्टे तक समस्त राज-परिवार अपने सुख-दुःख की बातें करता रहा। रानी ने पति के जीवन की उसअन्तिम रात्रि में पति के साथ रहने की इच्छा की, परन्तु लुई सहमत न हुआ। वह नहीं चाहता था कि मृत्यु के समय उनके मन में किसी प्रकार का मोह अथवा विकार उत्पन्न हो। अगले दिन प्रातःकाल मिलने का वचन देकर उन सबको विदा किया।

रात्रि-भर उसके हृदय में भावों का तुमुल संग्राम होता रहा। उसने सारी रात जागकर बिता दी। दूसरे दिन बिना मिले ही, बिना कुछ कहे सुने ही राजा उस स्थान से चला गया। वह जानता था कि अन्तिम विदाई के दृश्य की चोट को रानी सहन न कर सकेगी। अन्तिम समय पति से भेंट न हो, इससे बढ़कर दुर्भाग्य पत्नी का और क्या हो सकता है? रानी का व्यवहार चाहे जैसा रहा हो, वह लुई को हृदय से चाहती थी। उसके लिए उसका पति परमेश्वर के समान था। रानी ने पति की मृत्यु का समाचार सुना तो मूच्छित हो गई। चेतना लौटने पर वह उन्मादिनी के समान बकझक करने लगी। परन्तु ननद की सेवा-शुश्रुषा से उसकी दशा शीघ्र ही ठीक हो गई।


दस

जिस समय देहली के तख्त पर मुज्जिमशाह आसीन था, उस समय अफगानिस्तान के तीरा शहर का निवासी दाऊदखाँ भाग्य आजमाने भारत आया। दाऊदखाँ पठान था और उसमें वीरता की भावनाएँ उठ रही थीं। उस समय उत्तर भारत में कटहर प्रदेश (अवध के उत्तर और गंगा के पूर्व हिमालय की तराई में रामपुर, मुरादाबाद, बरेली और बिजनौर का सम्मिलित हरा-भरा सुहावना प्रदेश) छोटे-छोटे ताल्लुकों में बंटा हुआ था। ताल्लुकेदार राजपूत और ठाकुर थे, जो परस्पर में ईर्ष्या-द्वेष तथा शक्ति-

६४