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[ दूसरा
आदर्श महिला

पाकर संसार की और किसी भी चीज़ की परवा नहीं करती। आप जैसे श्रेष्ठ पुरुष को पाने से मुझे धन की बिलकुल कमी नहीं है। स्वामी के चित्त को रिझाने ही के लिए स्त्री के सिंगार-पटार की ज़रूरत होती है। आप जब मुझको इतना अधिक प्यार करते हैं, तब मुझे सिंगार-पटार करने की कोई ज़रूरत नहीं। पृथ्वी के जल से प्रेम की प्यास नहीं बुझती। स्वर्ग के अमृत की बूँद को पीने से ही वह प्यास बुझती है। आकाश को चूमनेवाले बड़े ऊँचे-ऊँचे राजमहल में शान्ति नहीं है; शान्ति है संसार के बाहर, लोगों की भीड़ से दूर---जन-विहीन तपोवन में। नाथ! आपके इस सुन्दर मुख को देखकर ही मेरे हृदय की प्यास बुझ गई है। आपका पवित्र संग मेरे लिए राजसुख है। आपका प्रेम से पवित्र हृदय ही मेरे लिए बढ़िया राजसी पलँग है। मुझे कमी किस बात की है? आप जिन फूलों को बड़ी हिफ़ाज़त से मेरे लिए ले आते हैं वे फूल ही मेरे लिए जड़ाऊ ज़ेवर हैं। आप के दिये हुए देवताओं के जूठे फल-मूल ही मेरे लिए राजभोग हैं। आपकी मीठी वाणी मेरे लिए अमृत से भी बढ़कर है। आपके ऐसे ऊँचे हृदयवाले स्वामी को पाकर मैं इन्द्राणी से भी अपने को अधिक भाग्यवान् समझती हूँ।

सावित्री के मुँह से ऐसे मधुर वचन सुन सत्यवान ने उससे प्रेमपूर्वक कहा---सावित्री! क्षमा करो। मैं फिर कभी तुमसे ऐसी बात नहीं कहूँगा।

इस प्रकार आदर और मान से सावित्री के दिन बीतने लगे। सावित्री अपने हृदय की व्यथा को हृदय में ही दबाकर प्रसन्न मुख से सब काम करने लगी।

वसन्त का समय है। वसन्ती शोभा से प्रकृति की खिलवाड़ का बाग़ सुरीले कण्ठवाले पक्षियों की तान से गूँज रहा है। मंजरियाँ वसन्त के सुहावने स्पर्श से खिल गई हैं। जहाँ देखो वहाँ वसन्त ही