पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०४
[ दूसरा
आदर्श महिला

कैसे बीतेगी और मृत्यु के किनारे खड़ा होकर सत्यवान व्रत से कुम्हलाई हुई पत्नी के मुख की शोभा देख रहा है। वह उसके बदन से निकलते हुए सतीत्व-तेज को देख रहा है।

धीरे-धीरे अँधेरा हो गया। सत्यवान ने लकड़ी काटने के लिए एक सूखे पेड़ पर चढ़कर एक डाल पर कुल्हाड़ी चलाई। अब उसका सारा शरीर एकाएक काँप उठा। उसके सिर में हज़ारों सुइयाँ गड़ने का सा दर्द होने लगा। सत्यवान के हाथ से कुल्हाड़ी नीचे गिर पड़ी। दाहिनी आँख फड़कने से सावित्री समझ गई कि महर्षि का कहा हुआ वह अन्त समय आ गया। तब उसने घबराकर कहा-- "नाथ! झटपट नीचे उतर आइए। अब तनिक भी देर न कीजिए।" सत्यवान को वृक्ष से धीरे-धीर नीचे उतरकर बैठते देर न हुई कि वह तुरन्त बेहोश हो गया। उसका मुँह कुम्हला गया। सावित्री ने अँधेरी दुनिया में दूना अँधेरा देखा। झींगुरों की झङ्कार से झनझन करती हुई उस अँधेरे पाख के घने अँधेरे से ढकी हुई रात को, खूँखार जानवरों से भरे हुए वन में, पति की देह को गोद में लिये सावित्री अकेली बैठी है। इस पर भी सावित्री रोई नहीं। उसने सोचा, शास्त्र की आज्ञा है कि विपद् में धीरज धरना चाहिए। विपद् में अधीर होने से वह विपद् और भी बढ़ जाती है। यही विचार कर, सावित्री आँचल से मुँह पोंछकर अधमरे पति को गोद में लिये बैठी रही। सारे जगत् ने सती की ओर टकटकी बाँध दी। वन के जानवर देखने लगे कि यह स्थिर बिजली-सी रमणी कौन है। नीले आकाश के तारे एकटक दृष्टि से सती के अलौकिक सतीत्व-तेज को देखने लगे।

सावित्री ने सत्यवान की छाती पर हाथ धरकर देखा कि अभी तो कलेजे की धड़कन मालूम होती है, किन्तु वह धीरे-धीरे