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आख्यान ]
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सावित्री

मन्द होती जाती है। उसने सोचा कि अब महर्षि की बात सच होने पर है!

अँधेरे से ढकी हुई वह वन-भूमि दिव्य प्रकाश से अचानक जगमगा उठी। नये बादल जैसे शरीर में बिजली की भाँति भैंसे पर सँवार एक विचित्र रूपधारी पुरुष को आते देखकर सावित्री समझ गई कि यमराज आते हैं। इससे सावित्री का हृदय काँप उठा। उसने मन को पक्का कर सोचा कि देवता से क्या डर है। फिर यह तो धर्मराज हैं, इनके सामने मेरे डरने की कोई बात नहीं।

सावित्री ने हिम्मत से छाती को मज़बूत करके, सामने खड़े, दण्ड और फन्दा हाथ में लिये हुए, जगमगे पुरुष से पूछा--आप क्या धर्मराज यम हैं?

धर्मराज ने कहा---हाँ, तुम्हारे पति की उम्र पूरी हो गई है। मैं उसको ले जाने के लिए आया हूँ।

सावित्री ने, सत्यवान के मस्तक को धीरे-धीरे भूमि पर रखकर सामने खड़े धर्मराज को पृथिवी पर गिरकर साष्टाङ्ग प्रणाम किया। इस बीच में यम, सती के शरीर से अलग पड़े, मरणासन्न सत्यवान के---अँगूठे के बराबर---प्राण-पुरुष को निकालकर दक्षिण दिशा को जाने लगे।

सावित्री ने देखा कि सत्यवान के कलेजे की धड़कन बिलकुल बन्द हो गई है; उनके हँसते हुए से मुखड़े पर मौत की कालिमा छा गई है। तब वह बे-उपाय हो गई। उसने समझा कि आज मैं अकेली---बिलकुल अकेली हूँ! संसार में स्त्री के जीवन के ये एकमात्र प्राणाधार आज मृत्यु देवता के पीछे जा रहे हैं---यह सोचकर वह एक साँस, पगली की तरह, धर्मराज के पीछे-पीछे जाने लगी।

धर्मराज ने जब देखा कि सावित्री, पगली की तरह, ताबरतोड़