पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
आख्यान ]
१११
सावित्री

कहने लगे। हम भी कहते हैं कि आओ देवी! शोक और ताप से कलुषित इस मृत्युलोक में पवित्रता की निर्मल ज्योति फैलाओ। भारत के घर-घर में तुम्हारा पवित्र नाम लिया जाय। तुम निराशा के अँधेरे में अपनी सदा वन्दनीय श्रेष्ठ मूर्ति हम अभागों को दिखाकर तृप्त करो---धन्य करो। तुम्हारे पवित्र नाम के स्मरण से सब देशों---सब जातियों की स्त्रियों का हृदय पति के प्रेम से पूर्ण हो।