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[ तीसरा
आदर्श महिला


पर भविष्य जीवन की कितनी ही अच्छी-अच्छी तसवीरें खींचीं। उसने सोचा कि नारीत्व ही नारी का प्राण है। भगवती लोपामुद्रा, रघुकुलवधू इन्दुमती और लक्ष्मी-स्वरूपिणी रुक्मिणी ने जिस वंश को धन्य किया है, मैं भी उस वंश की कीर्ति को बढ़ा सकती हूँ।

एक दिन वसन्त में प्रातःकाल दमयन्ती राज-महल के बग़ीचे में सखियों के साथ घूम रही थी। इतने में एक सखी बोल उठी―“यह देखो, यह लता किस तरह अपनी भुजा से एक श्यामसलोने वृक्ष को लिपटाये हुए है!” दूसरी सखी ने कहा―यह देखो, तालाब के जल में खिले हुए कमल को नये सूर्य्य को सुनहरी किरणें कैसे चूम रही हैं। सखी! इस प्यारे प्रभात में सभी जगह प्रीति की बहार है। केवल आनन्द―केवल उच्व्छास मिलन का मज़ा है।

दमयन्ती ने कहा―“सखी! भगवान् के राज्य में ग्रहों और नक्षत्रों से लेकर पशु-पक्षी, कीट-पतंग, और जड़-चेतन तक सभी पदार्थ प्रीति के अटूट धागे में बँधे हुए हैं। इस बन्धन के काटने का उपाय नहीं। सखी! इसी से स्त्री और पुरुष के हृदय एक-दूसरे से मिलना चाहते हैं। उनके इस परस्पर के मेल से ही मिलन का आनन्द बढ़ जाता है। सखी! यह जो कुसुमकली देखती हो, इस पर जिस दिन भौर गूँँजेंगे उसी दिन इसका खिलना सफल होगा। स्त्री भी जिस दिन स्त्रीत्व का गौरव पाकर पति-देवता के प्रेम-पवित्र सोहाग से पुल- कित हो जाय उस दिन धन्य होगी।” पास की एक सहेली बोल उठी―“हाँ सखी! हम तुमको किस दिन उस रूप में देखेंगी?” दमयन्ती लज्जित हुई।

इस प्रकार बातचीत करते-करते बग़ीचे में घूम-घामकर दमयन्ती ने, पोखर के किनारे जाकर, देखा कि एक बर्फ़ के समान सफ़ेद हंस