महाराज भीम के यहाँ अपार सम्पत्ति थी। उनका आकाश को चूमनेवाला महल और विविध रत्नों से भरा हुआ ख़ज़ाना संसार में बेजोड़ था, परन्तु कोई सन्तान न होने से राजा को सभी सूना लगता था।
महाराज भीम ने सन्तान पाने के लिए बहुतेरे देवी-देवताओं की उपासना की, किन्तु कुछ फल नहीं हुआ।
एक दिन राजा भीम दरबार में बैठे हुए थे कि महर्षि दमन वहाँ आये। राजा ने बड़े आदर से स्वागत करके उनको सिंहासन पर बिठाया। महर्षि ने राजा की सेवा और आव-भगत से विशेष प्रसन्न होकर उनको मनचाही सन्तान पाने का वरदान दिया। कोई सन्तान न होने से उनका जो हृदय रात-दिन जलता रहता था उस हृदय में आज महर्षि के वरदान से ढाढ़स की शीतल बयार बहने लगी।
क्रम से रानी के तीन पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुई। महर्षि दमन के वर से होने के कारण राजा भीम ने बेटों के नाम दम, दान्त, और दमन तथा बेटी का नाम दमयन्ती रक्खा। उन भोले-भाले बालकों की सुन्दर कान्ति से राज-महल शोभने, हँसी से गूँजने और खेलने-कूदने से गुलज़ार रहने लगा। राजा और रानी बेटा-बेटियों के फूल-से कोमल सुन्दर शरीर देखकर तृप्त हो गये।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ दमयन्ती के रूप की शोभा भी बढ़ने लगी। सब लोग देखते थे कि उस फूल-सी बालिका की देह में कैसी बढ़ियाँ शोभा है। यौवन के आरम्भ में तो दमयन्ती का रूप उछल सा उठा। वसन्त की सुगन्धित बयार लगने से जैसे फूलों की कलियाँ चटक उठती हैं वैसेही दमयन्ती के हृदय में नये यौवन की मीठी पुकार से कर्तव्य के ज्ञान का अंकुर उपजा। दमयन्ती ने कल्पना की दीवार