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[ तीसरा
आदर्श महिला

का राजकुमार हूँ--"यह कहने के साथ ही देवदूत अन्तर्धान हो गये।

नल के मुँह से यह बात सुनकर कि 'मैं ही निषध देश का राज- कुमार हूँ' दमयन्ती पुलकित हो गई; किन्तु, तुरन्त ही, नल के साथ किये हुए अपने बर्ताव की याद करके वह दुःखित मन से बोली---सखी! तब तो मैंने निषध-राजकुमार के साथ अन्याय किया है।

सखी---नहीं सखी! तुमसे इसमें कुछ भी अन्याय नहीं हुआ, बल्कि तुमने बेजान-पहचान के अजनबी के साथ काफ़ी भला बर्ताव किया है। मनुष्य तो किसी के भीतर की बात जानता नहीं! यदि मनुष्य अन्तस् की भी बात को जानता होता तो फिर देवता और मनुष्य में भेद ही क्या रह जाता? सखी! खेद मत करो; दूत का वेष धारण कर आये हुए निषधपति तुम्हारे सदाचार से तृप्त हुए हैं।

इतने में स्त्रियों को साथ लिये हुए रानी वहाँ आ पहुँचीं। उन्होंने स्वयंवर के लायक श्रृंगार से सजी हुई लड़की के सिर पर दूब और अक्षत छिड़ककर आशीर्वाद देते हुए कहा--'बेटी दमयन्ती! तुम्हारी कामना पूरी हो, देवता लोग तुम्हारे सहायक हों।" इसके बाद राजधानी की स्त्रियों ने एक-एक करके दमयन्ती के सिर पर दूब-अक्षत छिड़ककर आशीर्वाद दिया। माता के चरणों में दमयन्ती प्रणाम करके धाई के साथ स्वयंवर-सभा की ओर चली।

[ ६ ]

राजमहल के सामने ही स्वयंवर की सभा है। संगमरमर के बने ऊँचे खम्भों पर चँदोवा टँगा है। तरह-तरह के फूलों और पत्तों से खम्भे सजाये गये हैं। तरह-तरह के सुगन्धित फूलों की मालाएँ चारों और खुशबू फैला रही हैं। स्वयंवर की सभा के चारों ओर चार नई मेहराबें बनी हैं। उनमें तरह-तरह के फूल-पत्ते और फल लगाये गये हैं।