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[ तीसरा
आदर्श महिला

आप मेरे किसी व्यवहार से दुःख पाते हैं? महाराज! मैंने जान-बूझकर तो कोई अपराध किया नहीं है, अगर भूल से कुछ कुसूर हो गया हो तो क्षमा कीजिए। मुझे चरणों से अलग मत कीजिए, मैं आपके ही आसरे में हूँ। इस पतलीसी बेल को तरुवर से अलग करके धूल में मत मिलाइए।" तदनन्तर दमयन्ती आँसुओं की धारा बहाने लगी।

नल चुप हैं। घोर चिन्ता से पागल हो रहे हैं। फूलसी कोमल दमयन्ती उनके चरणों में गिरकर रोने लगी।

नल ने कुछ सँभलकर कहा---प्यारी! तुम घबराती क्यों हो? मैं तुम्हें छोड़ना नहीं चाहता। मैं आत्मा को त्यागकर जीता भले रह जाऊँ, पर तुमको छोड़कर मैं जीता नहीं रह सकता।

दमयन्ती ने कहा---महाराज! अगर आप मुझे छोड़ना नहीं चाहते तो फिर आपने विदर्भ का रास्ता क्यों बताया? मैं आपकी उदासीनता देखकर घबरा रही हूँ। जान पड़ता है कि आप मुझे छोड़कर चले जायँगे।

नल ने किसी तरह दमयन्ती को ढाढ़स दिया।

[ १० ]

क दिन गहरी रात को नल ने देखा कि दमयन्ती सोई हुई है। दमयन्ती की नींद से अलसाई हुई भुजाएँ नल के शरीर से अलग हो पड़ी हैं। भागने का यही अच्छा मौका है। नल ने इधर-उधर दृष्टि घुमाई तो सामने एक छुरी नज़र आई। उसे देखकर नल ने सोचा कि दमयन्ती को छोड़ देना ही विधाता को मंजूर है। नहीं तो इस घने वन में छुरी कहाँ से आ गई। यह सोचकर, नल ने उस छुरी से रानी की आधी सारी फाड़ ली। आज महाराज नल मानो बन्धन से छूट गये हैं। वे सोचने लगे, कहाँ जाऊँ। इस अँधेरी रात में, तरह