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आख्यान ]
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दमयन्ती

हो; तुम मेरे घर चलो, अपने निर्दयी स्वामी को भूल जाओ। मैं प्राण देकर तुम्हारी पूजा करूँगा।

यह बात सुनकर दमयन्ती के क्रोध की आग भड़क उठी। क्रोध के मारे सती का शरीर थर-थर काँपने लगा।

उसके दोनों नेत्र अग्नि की तरह चमक-चमककर, महिषासुर के युद्ध में देवी के नेत्रों की तरह, नाचने लगे। सती दमयन्ती की देह से निकली हुई क्रोध की अग्नि में जलकर शिकारी भस्म हो गया।

इस प्रकार, व्याध के हाथ से बचकर, दमयन्ती सोचने लगी कि अब कहाँ जाऊँ, कहाँ जाने से प्राणनाथ को पाऊँगी। यह सोचकर वह रोते-रोते वन के उत्तरी हिस्से में गई। वहाँ उसने देखा कि एक सीधा रास्ता सामने से चला गया है और उसी रास्ते से कई व्यापारी व्यापार करने जा रहे हैं। दमयन्ती उन व्यापारियों के साथ हो गई। बनियों के मुखिया ने उसको ढाढ़स दिया और दूसरे बनियों ने उसका आदर किया।

धीरे-धीरे रात हुई। सब लोगों ने आराम करने के लिए एक तालाब के किनारे बैलों का बोझा उतार दिया और माल को बीच में रखकर सब लोग सो गये। दमयन्ती एक तरफ़ धूल में लेट रही। जब आधी रात को सब व्यापारी सो गये तो कुछ जङ्गली हाथी तालाब में पानी पीने आये। किनारे पर लदे हुए बैलों और बनियों को देखकर वे क्रोध से गरजने लगे। बँधे हुए बैलों से जंगली हाथियों की लड़ाई छिड़ गई। बहुतेरे व्यापारी उन लड़ते हुए पशुओं के पैरों तले कुचलकर मर गये। नादान बनियों ने सोचा कि बुरे लक्षणोंवाली इस स्त्री के साथ रहने से ही देवता लोग नाराज़ हो गये हैं। इसलिए, इसको तुरन्त मार डालना चाहिए; नहीं तो हम लोग देवता के कोप से छुटकारा नहीं पावेंगे। दमयन्ती ने उन लोगों की यह सलाह सुन ली। बस, वह