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आख्यान ]
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दमयन्ती

आँखों के पानी में मिल जाय" कहकर बड़े प्रेम से दमयन्ती के आँसू पोंछ दिये।

बहुत दिनों के वियोग के बाद आज दो दुःखित प्राण मिल गये। दमयन्ती का सायंकाल के कमल-सा कुम्हलाया हुआ मुखड़ा देख- कर नल को दुःख हुआ! नल का ऐसा बिगड़ा हुआ चेहरा देखकर दमयन्ती भी रोने लगी। इस प्रकार, आँसुओं के जल से दोनों की विरह से जलती हुई छाती ठण्डी हुई।

जुदा होने के बाद से अब तक की अपनी-अपनी बीती हुई विपद की कहानी दोनों ने एक-दूसरे को कह सुनाई।

कर्कोटक के दिये हुए दोनों कपड़े बदलकर नल अब असली रूप में हो गये। दुर्भाग्यरूपी राहु से छूटे हुए पूर्णचन्द्र के समान पति को देखकर आज दमयन्ती की प्रीति-नदी में तरङ्गे उठने लगीं।

रात बीतने के साथ-साथ यह अचरज से भरा समाचार सब पर ज़ाहिर हो गया। विदर्भ देश के निवासी, आज राजा के जमाई से राजकन्या की फिर से भेंट देखकर खुशी से उत्सव मनाने लगे!

राजा ऋतुपर्ण ने नल से क्षमा माँगकर बिदा ली।

इसके बाद निषध-पति महाराज नल विदर्भ-राज के घर प्राण से प्यारे पुत्र, कन्या और प्यारी पत्नी से मिलकर कुछ दिन सुख से रहे और फिर अपने राज्य को लौट आये।

महाराज नल के लौटने की बात सुनकर पुष्कर उदास हुआ।

राजधानी में पहुँचते ही नल ने पुष्कर को पासा खेलने के लिए ललकारा। पुष्कर ने ताने की हसी हँसकर कहा---"इतने दिन देश-विदेश में घूमकर ऐसा क्या ले आये हो जो पासा खेलने की