हिम्मत करते हो?" नल ने कहा---सो दिखा दूँगा, तुम आओ तो सही।
जूआ शुरू हुआ। तुरन्त पुष्कर सब कुछ हार गया, केवल उसका प्राण बाक़ी रह गया। तब नल ने कहा---पुष्कर! अब सिर्फ़ तुम्हारा प्राण बाकी है। मैं चाहूँ तो उसे भी ले सकता हूँ, किन्तु मैं ऐसा नहीं किया चाहता। तुम अपने पहले अधिकार को फिर पाओगे। आशा है, अब तुम ईर्ष्या और घमण्ड छोड़कर मुझ पर प्रीति करोगे।
देवता के समान बड़े भाई नल के अमृत ऐसे वचन सुनकर पुष्कर चरण पकड़कर बार-बार क्षमा माँगने लगा। महाराज नल ने उसके अपराध को क्षमा कर दिया।
इसके बाद, महाराज नल पहले की तरह प्रजा का पालन करने लगे। निषध देश की प्रजा और भारत के दूसरे-दूसरे राजा लेग महाराज नल और महारानी दमयन्ती की उदारता और निष्ठा की बातें सुनकर 'धन्य धन्य' करने लगे।
साध्वी दमयन्ती ने नल के लिए जो कष्ट सहा था उसका वर्णन नहीं हो सकता। दमयन्ती की ऐसी एकाग्रता, निष्ठा और संयम ने हिन्दुओं के पुराणों और इतिहासों को बड़प्पन दिया है। न जाने कितने दिन बीत गये, अभी तक सती के सतीत्व की कथा भारत के इतिहास में सोने के अक्षरों से लिखी हुई है। जब तक हिन्दू-धर्म रहेगा तब तक यह इसी प्रकार घर-घर में आदर पावेगी।