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[चौथा
आदर्श महिला

संगमर्मर के पहाड़ों से लिपटनेवाली नर्मदा में जल-विहार करने की इच्छा होती। वासना से छुट्टी यहीं थोड़े मिल जाती? नर्मदा-तीर के कास-फूल जब वर्षा की बिदाई के गीत गाते, जब सूर्य की किरणों में पीलापन दिखाई देता, मीठी बोलीवाले हंस जब नीले आकाश के बदन में सफ़ेद कमलों की माला पहनाकर उत्तर में मानसरोवर को जाते, तब आपके हृदय में एक और नई वासना की उमङ्ग उठती। आप फिर, मुझे साथ लेकर, मानसरोवर को चल देते किन्तु लालसा से छुटकारा वहाँ भी न होता। जिस समय आप देखते कि मानसरोवर में खिले हुए कमल-दल, ओसरूपी आँसू गिराकर, शरद की बिदाई का रङ्ग प्रकट कर रहे हैं उस समय आप राजधानी को लौट आते, किन्तु नाथ! सुख की उस गृहस्थी में भी और एक लालसा कोई मोहिनी मूर्ति धरकर आपके हृदय को खींचा करती। जब आप देखते कि यह धरती शरद के बाद फूलों से फूल-सी हो गई है, सूर्य की किरणें सुहावनी लगती हैं, और जब आप देखते कि मलयाचल की, भीनी-भीनी हवा बहती है और चिड़ियाँ मस्त होकर चहक रही हैं तब आपका हृदय फिर निकुञ्ज में रहने को ललचता। महाराज! तब आप मुझे साथ लेकर फिर बग़ीचों में चले जाते। विचारकर देखिए, वासना की निवृत्ति है कहाँ? यह काल-समुद्र की लहर की तरह जीवन को कितना डाँवाडोल कर देती है! मैं इस बात को नहीं समझती थी, इसी से किसी गुप्त सुख का भ्रम मेरी दृष्टि को रोके हुए था। मैं भविष्य को नहीं देखती थी। मैंने अपने प्रेम-प्यासे पति के हृदय में लालसा की धधकती हुई आग को घी डालकर धीरे-धीरे बढ़ा दिया था। महाराज! मेरा वह भ्रम मिट गया है। मैं समझ गई हूँ कि सुख निवृत्ति में है—सुख कर्तव्य को पूरा करने में है।

राजा ने मन ही मन सोचा—ऐसी प्रतिभा से चमकती