और रामचन्द्र का मोहन रूप देखकर लट्टू हो गई। जब रामचन्द्र ने पापिनी की व्याह-कामना पूरी नहीं की तब वह क्रूरा शूर्पनखा सीता देवी को ही, रामचन्द्र का प्रेम पाने में, बाधक समझकर उन्हें खाने दौड़ी। राक्षसी का यह भाव देखकर सीता डर गईं। उनका खिले हुए कमल सा मुँह सूख गया। लक्ष्मण ने पापिनी को उचित दण्ड दिया—उन्होंने उस अभागिनी के नाक-कान काट लिये।
अभागिनी के अपमान से खर और दूषण ने रामचन्द्र पर चढ़ाई की परन्तु सेना-सहित दोनों मारे गये। अब रामचन्द्र दण्डकारण्य में राक्षसों के लिए भयानक काल के समान बनकर रहने लगे।
नाक-कान कटी पापिनी शूर्पनखा ने प्रतिहिंसा की आग में जल-भुनकर रावण के पास जा अपनी दुर्दशा की बात कही। रावण, बहन के इस अपमान से, घी पाकर धधकती हुई आग की तरह जलने लगा और यह सोचकर वह क्रोध के मारे काँपने लगा कि उस तुच्छ आदमी ने त्रिलोकी को जीतनेवाले रावण की बहन का ऐसा अपमान किया। शूर्पनखा ने रावण से कहा-महाराज! मैंने वन में घूमते-घूमते, राम के पास, एक बड़ी सुन्दर स्त्री को देखकर सोचा कि यह मनुष्य राम के योग्य नहीं; किन्तु यह तो देवता और असुरों पर हुकूमत करनेवाले त्रिलोक-प्रसिद्ध मेरे भाई रावण को गोद में ही शोभा पाने योग्य है। खिले हुए फूल को देवता के चरणों पर कौन नहीं चढ़ाता? मैं इसी मतलब से वहाँ गई थी कि उस स्त्री को लाकर तुम्हें सौंपूँ। वंस, इसी से पापी राम ने मेरी यह दुर्गति कर डाली। मेरे साथी खर और दृषण मेरी सहायता करने गये थे, वे मारे गये। तुम अपने को तीनों लोकों का जीतनेवाला सनझकर गर्व तो करते हो; किन्तु अब दण्डक वन तुम्हारे अधिकार में नहीं। तुम्हारी एक-मात्र बहन का इस प्रकार अपमान हुआ है। मैं