पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/३१

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आख्यान ]
१८
सीता

बदला लेना चाहती हूँ; बदला लेने के लिए मेरी छाती जल रही है।तुम तुच्छ राम-लक्ष्मण को मारकर उस सुन्दरी सीता को ले आओ। सीता तुम्हारे विलास-वन में, खिले हुए स्थल-कमल की तरह, शोभा देगी।

अभिमानी रावण आज बदहवास है। एक ओर बहन का अप- मान और दूसरी ओर पाप-वासना। अभागा आज दो धाराओं में डूब रहा है। रावण अपनी मर्यादा को भूलकर रूप-अग्नि के आकर्षण से पतंग की तरह दौड़ा।

मायावी मारीच को साथ ले, आकाश में उड़नेवाले अपने पुष्पक विमान पर चढ़कर, रावण तुरन्त दण्डक वन में पहुँचा। दुर्बुद्धि रावण आत्म-शक्ति को भूलकर चोरी से अपनी पापवासना पूर्ण करने पर तैयार हुआ। रावण के हुक्म से मारीच एक सुनहरे मृग का रूप धरकर रामचन्द्र के आश्रम के पास फिरने लगा।

सुनहरे मृग को देखकर सीता ने रामचन्द्र से कहा—"नाथ! आप इस सुन्दर मृग को जीता पकड़ लावें, तो मैं इसको आश्रम में रखकर पालुँगी। अगर जीता न आ सके तो मार कर ही लावें। उसका सुन्दर चमड़ा हम लोगों के आश्रम में रहेगा।

आज रामचन्द्र की बुद्धि भी गड़बड़ा गई। वे देवताओं के पूज्य होकर आज धोखे में आ गये।‌ उनकी आँखों में धूल पड़ गई। हाथ में धनुष लेकर रामचन्द्र, लक्ष्मण को सीता की रखवाली का भार देकर, आश्रम से निकल पड़े।

रामचन्द्र ने ज्योंही स्वर्ण मृग का पीछा किया त्योंही वह अचा- नक गायब हो गया। रामचन्द्र इस माया को नहीं समझ सके। वे मृग के पीछे-पीछे दौड़ने लगे। दुर्भाग्यरूपी रात जैसे आफ़त में पड़े हुए बटोही की विद्यु त-हास्य करके दिल्लगी उड़ाती है, वैसे ही माया-