पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/७०

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दूसरा आख्यान


सावित्री
[१]

उत्तर भारत के पंजाब प्रदेश में चन्द्रभागा और वितस्ता नामक नदियों के बीच का स्थान पहले समय में मद्र राज्य कहलाता था। उस राज्य में अश्वपति नाम के एक बड़े भक्त राजा थे। उनके सुशासन से सारी प्रजा बहुत सुखी थी। राजा अश्वपति जितेन्द्रियता, प्रजानुराग और दयालुता आदि अनेक गुणों से एक आदर्श राजा समझे जाते थे।

तब से बहुत दिन बीत गये हैं, सदा बहनेवाले कालस्रोत ने मद्रदेश की उस गौरव-कीर्ति को सदा के लिए धो बहाया है। मद्र-देश की वह गौरव-गाथा तो लुप्त हो गई, किन्तु मद्रराज अश्वपति की बेटी सावित्री देवी की पुण्य-कथा ने हिन्दू नर-नारियों के धर्ममय हृदय को सतीत्व के एक अपूर्व विजय-गर्व से सदा के लिए ऊँचा कर रक्खा है। हम, इस अध्याय में, उसी सती-शिरोमणि सावित्री देवी की जीवनी की आलोचना करेंगे।

मद्रराज के अपूर्व प्रजानुराग से राज्य में कहीं विद्रोह नहीं था, प्रजा निःशंक थी, धरती धन-धान्य से परिपूर्ण रहती थी और सर्वत्र सुख और शान्ति विराजती थी। मद्रराज्य उत्पात और उपद्रव से