पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५८
[दूसरा
आदर्श महिला

बचा हुआ प्रेम का एक अपूर्व राज्य था, किन्तु वह सब विषयों में बढ़ा-चढ़ा होने पर भी एक बात में हीन था। इससे राजा-रानी दोनों सदा उदास रहते थे। यद्यपि वे प्रजा को पाकर सन्तान न होने के अभाव को भूल से गये थे, तथापि समय-समय पर एक गहरा दुःख उनके हृदय को बहुत दुखाया करता था।

इस प्रकार, राजा अश्वपति मन में एक गहरा दुःख दबाकर प्रजा-पालन करते थे। वे और उनकी साध्वी पत्नी, मालवी देवी, दोनों बीच-बीच में किसी हँसते-खेलते बालक का चमकता हुआ सुन्दर चेहरा देखकर मुग्ध हो जाते और रात को एक साथ बैठकर सन्तान न होने के दुःख का अनुभव किया करते।

प्रजा, उपस्थित राजागण, सभासद और ऋषि-मुनि, सभी देखते कि राजा के जी में एक घोर चिन्ता छाई हुई है। राजा अश्वपति होम की छाया से मद्रराज्य को तो सुशीतल बनाये हुए हैं किन्तु वे स्वयं मन की भयंकर अग्नि में सदा जलते रहते हैं।

एक दिन सबेरे राजा अश्वपति नगर में घूमने निकले। अचानक एक फूल-से सुकुमार बालक को देखकर उनका चित्त विकल हो उठा। भोले-भाले बालक की मधुर मुसकान, अपूर्व सरलता और सबसे बढ़कर सदा सुन्दर अभेद ज्ञान की मधुरता ने उनको मोह लिया।

राजमहल में लौटकर उन्होंने रानी से इस विषय में बहुत कुछ बातचीत की। राजा ने कहा—"रानी! हमें किसी चीज़ की कमी नहीं; हमारी प्रजा में वैर-विरोध नहीं है, धरती धन-धान्य से भरपूर है, राज्य पर किसी शत्रु की लोभ-दृष्टि नहीं है, सर्वत्र सुख और शान्ति विराजती है; किन्तु हमारे राजमहल में निरानन्द-सा छाया हुआ है। जो स्थान सरल हृदय और अस्फुट वाक्य बोलनेवाले बालक की खिलखिलाहट से नहीं गूँजता, वह भयानक भूत के स्थान के समान