पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१५०

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है। परंतु उन्होंने इस उपदेश को गृहण नहीं किया। उन्होंने जैसे प्रश्न का उत्तर भी वैसा ही दिया। उन्होंने भी स्पष्ट कह दिया कि―"नाथ, हम ऐसे उपदेशों की अधिकारिणी नहीं हैं। हमारे तो परमेश्वर ही पति हैं और परमेश्वर ही गति है।" तब उनके साथ रासक्रिया की। किंतु क्या रासलीला व्यभि- चार है। आज कल "बाल" में पर पुरुष के साथ कमर मिला कर नाचना व्यभिचार नहीं और एक अकेले ग्यारह वर्ष के बालक का सहस्त्रावधि स्त्रियों के साथ नाचना व्यभिचार! यह किस प्रामाणिक ग्रंथ में लिखा है श्री कृष्ण अमुक अमुक गोपी के साथ अमुक अमुक समय………"

'क्षमा कीजिए। लिखा क्यों नहीं है। एक भागवत में न सही और तो अनेक ग्रंथों में हैं। (पत्ति के नेत्रों को उलझा कर होठों ही होठों में हँसती हुई सिर झुका कर) ऐसी ऐसी लीलाएं हैं जिनसे मन का भाव और का और हो जाय, भगवान मकरकेतु तुरंत ही हृदय में आ बिराजें।"

"तात्पर्य तो वही है जो मैं अभी कह चुका। और बेशक हँसी दिल्लगी की, छेड़ छाड़ की और विलास विहार की भी अन्य ग्रंथों में कमी नहीं है किंतु मूल उन सब का वही है। इसके सिवाय इसमें कुछ अध्यात्म भी है जो अवकाश के समय विस्तार से समझाने का है। अच्छा थोड़ी देर के लिये मान लिया जाय कि यह कवियों की कल्पना है परंतु यदि कवियों की कल्पना के घोड़े इतनी दूर तक जा पहुँचे तो इसमें दोष ही