पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१५१

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क्या हो गया? फारसी काव्यों में पहले "इश्क मिजाज़ी" मानुषी प्रेम और फिर "इश्क हकीकी" ईश्वरीय प्रेम दिखलाया जाता है परंतु लोग मिजाज़ी में ही उलझ जाते हैं। हकीकी तक विरलेही पहुँचते हैं। हमारे यहाँ दोनों ही प्रेम एक श्री कृष्ण में ही लगा दिए गए हैं बस इसलिये धर्म का धर्म, और कर्म का कर्म, दोनों साथ साथ होकर शीघ्र ही काम बन जाता है। नायकाभेद में परकीया नायका एक मुख्य अंग है! सब ही भाषाओं के काव्य इस अंग से वंचित नहीं हैं। किंतु जैसा मैं पहले कह चुका विदेशी भाषाओं में एक साधारण पर पुरुष का पर स्त्री से प्रेम पढ़कर अब पाठकों की अनुकरण में प्रवृत्ति होती है तब हमारे संस्कृत के विद्वानों ने, देश भाषाओं के कवियों ने इसका सारा बोझा श्रीकृष्ण पर थोप कर समाज को दुराचार से बचा लिया, क्योंकि भारतवर्ष के इस गए बीते जमाने में भी करोड़ों हिंदू श्री कृष्ण को परमेश्वर मानते हैं और "बड़े कहैं सो करना किंतु करै सो न करना" उनका अटल सिद्धांत है। वे अब भी मानते हैं कि जो छोटी अंगुली पर गोवर्द्धन पर्वत को उठा लेने की क्षमता रखता था, जो महाभारत जैसे भीषण संग्राम में जाकर दुनियाँ को अपनी अंगुली पर नचाता था, जिसे गुरु मृतक पुत्रों को यमराज से छुड़ा लाने की सामर्थ थी, जो जादी के वस्त्र बन गया, उसने ऐसा किया भी तो किया।

जब उसके और कामों को अनुकरण करने की शक्ति