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प्रकरण―१७

स्टेशन का सीना।

जब मथुरा, वृंदावन आदि चौरासी कोश की ब्रजभूमि की यात्रा से निवृत्त होकर पंडित प्रियानाथ स्टेशन पर पहुँचे तब उनकी आँखों में पानी भर आया। उन्होंने कहा कि- "यहाँ की यात्रा से निवृत्त अवश्य हुए (निवृत्त क्या हुए अभी बड़ा लंबा सफर करना है इस लिये लाचारी से निवृत्त होना पड़ा) किंतु तृप्त नहीं हुए। भगवान यदि फिर भी कृपा करे तो एक बार जन्म सुफल करने का अवसर फिर मिल सकता है।" पंडित जी के कथन का सब ही संगी साथियों ने अनु- मोदन किया और सबही की आँखों में जल छा गया। अवकाश पाकर इन लोगों की इच्छा हुई कि बार बार ब्रजभूमि के गुणानुवाद की चर्चा हो तो अच्छा, अपने कर्ण कुहरों को श्री कृष्ण चरितामृत पिलाया जाय तो सौभाग्य और जहाँ तक गाड़ी की घंटी न बजे अपनी आँखें खोल खोल कर, फैला फैला कर इस पुण्य भूमि को निरखने के सिवाय और कुछ काम ही न करें। उस समय तक स्टेशन पर अधिक भीड़ भाड़ न देख कर ये लोग जानते थे, जानते क्या थे मन मोदक बनाते थे कि आज खूब टाँगें फैलाकर सोने का अवसर मिलेगा।" किंतु इनके मन मोदक नहीं बूर के लडुवा निकले।