पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२२२

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कर ही इन्होने सिर मुँडवाया। दाढ़ी मुड़वाई और मोछें मुड़वा कर बस नख और कांख छोड़कर बिलकुल सफाचट हो गए। पति और देवर का औरतों का सा सफाचट मुँह देख कर प्रियंवदा मुसकराई, और रोकते रोकते अपने प्राणनाथ की ओर एक कटाक्ष डालते हुए बस "काजल और टिकुली की कसर है" कहे बिना उससे न रहा गया। मा बाप मौजूद बतला कर गोपी बल्लभ ने भी अपनी बांकड़ी मोछें और "मान मनोहर" दाढ़ी मुँड़वाने में बहुत ही आना काना की, किंतु बूढ़े की एक ही घुड़की को उसे सीधा कर दिया। भगवानदास का पोपला मुँह अब तक उसकी लंबी और भारी दाढ़ी के घूँघट में छिपा हुआ था। आज दाढ़ी और मोछें उतरते ही पोपलेपन की पोल निकल गई। औरों को मुँड़वाते देख कर बुढ़िया चमेली का भी शौक चर्राया। नाई ने लेख बतला कर उसे केवल पैसे के लोभ से राजी कर लिया और इसलिये बूढ़े बुढ़िया की एक सी सूरत देखते ही सब के सब खिलखिला उठे। नाई राम ने तो प्रियंवदा को भी फुसलाने में कसर नहीं की थी किंतु "चल निगोड़े, कहीं सुहागिन लुगाइयाँ भी ऐसा करती होंगी!" कह कर उसने उसे टरका दिया। जब प्रयागी नाइयों की हुज्जत करने की आदत ही ठहरी फिर इनसे झगड़ने में वे क्यों चूकने लगे परंतु सब की मुँड़ाई के दो रूपए दिलाकर जंगी महाराज ने फैसला कर दिया।

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