पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/३५

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मात कर दे। अपना बल दिखलाने के लिये जब कभी किसी का हाथ पकड़ लेता है तो मानं फौलाद के हाथ हैं और क्रोध में आकर यदि किसी बेटे पोते के एकाध हलकी सी थप्पड़ मार दे तो नाक से खून निकल पड़े। यदि इससे कोई मरने का नाम ले देती उसी समय ठंढी साँस खैंच कर कहता है कि मरना तो आगे पीछे है ही। आज नहीं कल और कल नहीं परसों। मेरी बराबर के पेड़ तक नहीं रहे और जब सब तरह का सुख है तो मरना ही अच्छा है क्योंकि कल की कुछ खबर नहीं। भगवान अब जल्दी ही समेट ले पर एक ही बात का खटका है। पचास पचास वर्ष के लड़के हो जाने पर भी इस घर को सँभालनेवाला कोई नहीं है। अभी तक सब एक रस्सी में बँधे हुए हैं, इसी सब से बस्ती भर में धाक है। मेरे मरते ही सब अलग अलग होकर आपस में लड़ मरेंगे।

इस बूढ़े का कहना भी ठीक है। इसकी स्त्री मौजुद, आठ बेटे और सत्रह पोते मौजूद। आठ बहुएँ और नौ पतोहुएँ मौजूद। चार पाँच लड़कियाँ, पाँच सात पोतियाँ और दो सौन परपोते, परपोती, छः सात दौहित्र, दौहित्री। इस तरह कम से कम पचास आदमी एक चूल्हे पर रोटी खानेवाले हैं। कभी किसी की शादी है तो कभी किसी का गौना। साल भर में दो चार साहे भी होते हैं और भात देने के भी अवसर। बेटों के, बहुओं के, पोतों के और पतोहुओं के और