पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/४०

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तो मैं इसी लकड़ी से खोपड़ी फोड़ दूँगा। आया है बदमाश भारने! और क्यों री तैने भी इसको गालियाँ क्यों दीं? फट गया तो फट गया। जो काम करता है उसके हाथ से नुकसान भी होता है।"

खैर! इसी पर मामला खत्म हो गया। बहू को पास बुलाकर दो बुरी कहीं दो भली कहीं और समझा बुझाकर आयंदा के लिये सचेत कर दिया। जिन जिन को फटकारा था उन्हें पास बुलाकर कुछ समझाने की और कुछ प्यार की बातें करके राजी कर लिया। बस बूढ़े भगवान दास के गृह- राज्य की यही अदालत थी, यही फैसला था और यही सजा थी। इसी के कारण सारा कुनबा खाता पीता, और मौज करता था और आज कल के लोग चाहे हजार "संयुत् कुटुंब" की चाल को नापसंद करें परंतु जब तक बूढ़े बाबा के दम में दम रहा सारा घर उसकी आज्ञा के अधीन सुखी रहा। किसी तरह का आपस में लड़ाई झगड़ा न हुआ और जो कहीं इसका अंकुर पैदा भी हुधा तो इसी तरह उसने कोंपल में ही उसे काट डाला। उसके राज्य में हाली का, ग्वाल का, पढ़ाई का, निरानी का, रोपाई का, बुवाई का और इस तरह सब ही काम खेती के, घर गृहस्थी के, मेहनत मजदूरी के घरवाले मिल जुल कर कर देते थे। जहाँ तक बन सकता था दान पुण्य के सिवाय, सरकारी लगान और टैक्सों के सिवाय उसका पैसा वृधा नहीं जाता था। उसके मरने के अनंतर इस घर की क्या