पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/७५

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"खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है।" इस एक व्यक्ति को परोपकार में प्रवृत्त होते देखकर दूसरे का भी मन पिघला। उसने लपके हुए तार घर में जाकर तार बाबू के हजार मना करने पर भी तुरंत ही ट्राफिक सुपरिटेंडेंट को, ट्राफिक मैंनेजर को और दूसरों को तार दिया―

"ट्रेनें चलने के बंदोबस्त में अगर देर हो तो हो लेकिन यहाँ के हजार बारह सौ मुसाफिर भूख, प्यास, धूप और लू से मरे जाते हैं। हैजा फूट निकला है। जल्द बंदोबस्त कीजिए।"

केवल इतना ही करके उसे संतोष नहीं हुआ क्योंकि वह जानता था कि "इस तार को पाकर यदि कोई आया तो उसे आने में कम से कम तीन घंटे चाहिएँ। और यदि आनेवाला साथ में कुछ न लाया तो और भी मौत समझो। इसलिये तार देने पर भी उनके भरोसे पर चुप रहने के बदले उसने अपने भूखे पेट से लू की, धूप की, प्यास और गर्मी की कुछ पर्वाह न करके गाँव में जाने के लिये कमर कसी। स्टेशन से बाहर निक- लते ही उसे सौभाग्य से जंगल में आवारा चरता हुआ एक टट्टू भी मिल गया। टट्टू मिला सही परंतु न तो उसके लगाम और न जीन। उसके पास गया तो वह मुँह से काटने और पैरों से दुलत्तियाँ झाड़ने लगा। "अब बड़ी मुशकिल हुई। प्रथम तो ढाई कोस जाना और इतनी दूर ही आना। पैदल चलने का अभ्यास नहीं। यदि टट्टू पर चढ़ता हूँ तो शायद यह कहीं गढ़े में गिराकर जान ले डाले। अच्छे अच्छे बड़े बड़े