पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/७७

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दो गाडियाँ लेकर एक स्पेशल भीं वहाँ आ पहुँची। गाड़ी में जो इस बारह कुली सवार थे उन्होंने खाने के टोकरे उतारे और खडम खडम अपने बूटों को बजाते हुए आठ दस युरोपियन भी उतर पड़े। दोनों ओर से लड्डू, जलेबी, पूरी, कचौड़ी, चना, चबेना, जो कुछ मिल सका सब लोगों को बाँट दिया गया, और बात की बात में सब के सब मुसाफिर खा पीकर उन दयावान् युरोपियनों को और उन दो देशी सज्जनों को आशीर्वाद दे दे कर धन्यवाद के पुल बाँधने लगे। उन साहब बहादुरों ने इन सज्जनों की बहुत कुछ प्रशंसा की बहुत बहुत धन्यवाद दिया और इनका नाम एक साहब ने अपनी नोटबुक में लिख लिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि इन दोनों को गवर्नमेंट ने "कैसरहिंद" सोने के तमगे प्रदान किए।

जब खा पीकर सब लोग निपट चुके तो सब के सब झुंड के झुंड ट्रैफिक सुपरेंटेंडेंड के गिई आ लिपटे। "सर- कार हमें जल्द पहुँचाइए।" "हम यहाँ बहुत कष्ट में हैं।" और "आपने जैसे हमारी जान बचाई है वैसे ही यहाँ से रवाना कर दो।" को चिल्लाहद मचाई। साहब ने सबको ढाढ़स दिया और सब ही अफसर गाडे, ड्राइवर, फायरमैन, खलासी बन बन कर मुसाफिरों को गाड़ियों में सवार करा करा कर वहाँ से विदा हुए। उस समय उन्होंने