पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/३४

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लूले, लँगड़े, अँधे, अपाहिज, कुरूप, दुर्गुणी, व्यभिचारी पति की समानता कोई नहीं कर सकता वैसे ही मनुष्य के लिये उसका इष्टदेव है।"

अस्तु, भगवान् वल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक में पहुँचकर इन लोगों की परस्पर जो बातें हुई उसका सार यह हैं। पंडितजी बोले --

"आजकल, रेल से, तार से और छापे से, किसी साधारण मनुष्य के हाथ से यदि कोई अच्छा या बुरा काम हो तो उसका देश भर में डंका पिट जाता है, किंतु जिस समय ऐसे ऐसे आचार्यों का जन्म हुआ ऐसी किसी प्रकार की सुविधा नहीं थी। और तो क्या चोरों से, लुटेरों से और दुष्टों से रास्ता चलना, घर से बाहर निकलना भी कठिन था। कहते हुए हृदय विदीर्ण होता है, भगवान वैसा समय कभी इस देश के न दिखलावे। परमेश्वर अँगरेजों का भला करे, देश में ऐसी शांति विराजमान होने का यश इन्हीं का है। नहीं तो भगवान् वल्लभाचार्य का जिस समय प्रादुर्भाव हुआ धार्मिक हिंदुओं के लिये घर बैठे भी खैर नहीं थी। उनके ग्रंथरत्न जला जलाकर दुष्टों ने हम्माम गर्म करने में दुनिया का सर्वनाश किया और हजारों हिंदु लौंडी-गुलाम बना दिए गए। ऐसे समय में जिस महात्मा ने प्रेम और भक्ति का प्रचार किया, देश भर में धर्म का डंका बजा दिया वह यदि महाप्रभु न कहलावे तो क्या आजकल के मतप्रवर्तक? वास्तव में भगवान्