पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/३६

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भगवत्-सेवा अलौकिक है और वास्तव में इस मत के प्रचार से संसार का बहुत उपकार हुआ हैं। यह मत भी नया नहीं है। भगवान् शिव इसके प्रवर्तक हुए हैं।"

"वास्तव में सत्य है। हमारे शिव और विष्णु संम्प्रदायों के जितने प्रवर्तक आचार्य हुए वे सब ही अपने अपने मत के अद्वितीय विद्वान् थे। उन्होंने दुनिया का बड़ा उपकार किया है और उनकी भगवान् व्यासजी के जोड़ की विद्वत्ता देखकर पश्चिमी विद्वान् भी उनके आगे सिर झुकाते हैं। हमारे दर्शनों का दर्शन करके, वेद भगवान् का का थोड़ा आशय जानकर, युरोप के सुप्रसिद्ध संस्कृतवेत्ता प्रोरफेस मैक्सम्यंलर ने तो यहाँ तक कह दिया है कि 'संस्कृत के अगाध महासागर में अभी तक किसी भी युरोपियन विद्वान् ने प्रदेश तक नहीं किया। जो हुए हैं, होते जाते हैं, वे केवल किनारे की कौड़ियाँ बीतने हैं।' परंतु महाराज, एक ही अनर्थ हो गया।"

"क्या क्या! कहो न! संकोच मत करो! मन खोलकर कहो।"

"अनर्थ यही कि उन महात्माओं की गद्दी को जो आजकल सुशांभित करनेवाले हैं उनमें विद्वान् बिरले हैं। मेरा कथन किसी एक संप्रदाय के लिये नहीं है। हाँ! इन तीर्थगुरुओं की तरह आप के बाद बेटा और बेटे के अनंतर पोता, इस तरह गद्दी पर बैठने का जो पैतृक अधिकार है वही उनके मन का खटका निकाल देता है, वे पढ़ते लिखते कुछ नहीं। वे