पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/६३

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सो बस मारता कुटता ही। पहले तो अपने बाप के बराबर, भाई के लकड़ी मारी और फिर छोटो को मार मार कर गिरा दिया। बहन, मुझसे देखा नहीं गया इसलिए भाग आई। रामजी ऐसे जीने से तो मौत दे दे। हाय! अब क्या करूँगी ?

सेवा की बहू की रामकहानी सुनकर जब सब ही औरतें "हाँ बहन ! सच है! हाँ बीर सच है!" कहकर उसकी हाँ में हाँ मिल रही थीं तब घर से भागे हुए तीन चार बालक आए। ताई चल! म्ममी चल! अम्मा चल!!" कहकर किसी ने उसका लंहगा पकड़ा किसी ने साड़ी और कोई हाथ पकड़कर उसे खैंचने लगा और तब ही "हाय हाय! क्या गजब हो गया? मुझ मुई के क्यों बुलाने आए।" कहती हुई जल का घड़ा सिर पर उठाए वह घर पहुँची। वहाँ जाकर देखती क्या है कि उस की आफत की परकाला लड़की का बाप देवा, सेवा की टाँग पकड़कर खैंचता जाता है और यि ही गोलियों के गोले बरसाना जाता हैं। बिचारे सेवा का कुसूर यही है कि उसने देवा की इकलौती लाड़ली छोरी से कहा सो कहा ही क्यों? लड़की बेशक लाड़ली थी और सो भी इसलिये कि उसकी अटपटी बातों से कुछ चटपटापन पाकर बूढे बाबा ने उसका नाम ही मिरची रख दिया था। मिरची थी तो जरा सी पर इधर की उधर झूठी सच्ची मिड़ा देने में बड़ी बहादुर थी। आज उसने अपने मा बाप से कह दिया है कि "ताऊजी जूते मारकर तुम दोनों को निकाल देंगे। यही