पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(९७)

कम नहीं थे परंतु पुष्कर जैसे पुण्ये सरोवर में मगर एक नहीं, सैंकड़ों, इससे भी अधिक हैं। जहाँ के मगर, घड़ियाल नर-शरीर से, सिंहव्यालादि जैसे नरघाती भीषण जीवों को डरा देनेवाले मनुष्य से न डरकर उन्हें किनारे से खैंच ले जाने का हैसिला रखते हैं, जिनके मारे किनारे पर बैठकर स्नान कर लेने के सिवाय जल में घुसने तक का साहस नहीं होता, जल में एक अदष्ट पदार्थ को छुड़ाने के लिये पंडित जी के प्रवेश करने देना किसी को स्वीकार नहीं होता । बस इनके तैयार होते ही-“खबरदार ! भीतर पैर रखा तो! गाय तो गई सो गई ही परंतु तुम्हारा भी कदापि पता नहीं लगेगा। अभी पांच मिनट में तुम्हारे टुकड़े टुकड़े करके खा जाय। अकेले तुम्हारे शरीर पर दस बीस टूट पड़ेगें की चिल्लाहट मची । बस हताश होकर इन्हें रुक जाना पड़ा और सच्च पूछा ते प्रियंवदा की चार चूड़ियों के बल से ये अचानक रुक गए । यो ये रुके सही परंतु इन्होंने रो दिया---

"हे भगवान्, आप तो एक बार गज की देर सुनार उसे ग्राह से बचाने के लिये, नंगे पैरों गरुड़ को छोड़कर दौड़े आए थे आज कहाँ हो ? राम राम ! बड़ा ही अधर्म है । इस' भीषण दृश्य से हृदय विदीर्ण हो जाता है। ऐसी पुण्यभूमि में ऐसा घोर अनर्थ ! हाँ ! अब मैं समझा ! अब इसका कारण मेरे ध्यान में आया। इस ब्रह्मद्रव में निरंतर

अ० हिं०----१७