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प्रकरण--५६
पुष्कर में बालक साधु

मत प्रकरण के अंत में पुष्कर की कुंज से चलकर देवदर्शन के लिये जाते हुए दो साधुओं को देखकर पंडित जी रुक गए थे । उनमें एक की वय १८ साल, गौर वर्गा, विस्तीण ललाट, विशाल वक्षस्थल, गठा हुआ बदन, सिर की जटा कंधे तक लटकी हुई, शरीर पर भस्म रमाए हुए, लाल लाल आंखे और चेहरे से सयम का,तप का अथवा भजन का प्रभाव फट फूटकर निकलता था । उसके मुख्य कमल की प्रतिभा देख देखकर अनायस बोध होता था कि यह ब्राह्मण शरीर है । इंद्रियांदमन से सुप्राप्त कांति उनके शरीर पर सुचारु रूप से झलक रही थी। मुख पर दाढ़ी मोछ का नाम नहीं और न कानों में कुंडल अथवा छिदे हुए कान । गले में रुद्राक्ष का कंठा अवश्य था । कमर में बूंज की कोंदनी पर लँगाटी और हाथ में एक तुंबी के सिवाय उसके पास कोई वस्तु नहीं थी।

दूसरा साधु, साधु नहीं साधुनी अथवा संन्यासिनी थी । इसकी उमर तेरह साल, वही गौर व सुंदर, सुडौल और गोल चेहरा, बड़ी बड़ी आंखे । और सब बाते' उस साधु से मिलती जुलती, यहाँ तक कि दोनों के मोहरे को । देखकर एक छोटा सा बालक भी अनायास कह उठे कि ये