पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१२७

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से बहुत डरती थी । इस कारण उसने अपने घरवालों से सब हाल छिपाया । मुझे इस बहाने से उसे छोड़कर राजी करने का अच्छा मैका मिल गया। "मोरी में का बेर" कह कर मेरी देखा देखी और भी लड़के लड़की उसे चिढ़ाने लगे और यो उसकी चिढ़ पड़ गई।

"अब मैं अपने किए पर बहुत पछवाला हूँ और यदि सरकार मानकर मुझको इस बार क्षमा कर दें तो आगे से कुकर्म न करने की कलम भी खाता हूं......,"

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पंडित दीनबंधु के पत्र में इस प्रकार की बातें पढ़कर कांतान बहुत ही अपने मन में लज्जित हुए । एक साध्वी पतिव्रता माता समान भाभी के निष्कलंक होने पर उसके चरित्र पर संदेह करने पर वह पछताए और प्रियंवदा के चरणों में सिर पर उन्हें बार बार क्षमा मांगी । "अंत भला सो भला" कहकर प्रियंवदा ने देवरको संतुष्ट किया और यो उसके चित्त में जो एक मिथ्याभिशाप की चिंता क आग सुलगा करती थी वह दीनबंधु के पत्र से बुझ गई । उसने रात्रि के समय प्राणनाथ के चरण चापते चापते उनका चित्त प्रसन्न देखकर यह सारा प्रसंग सुनाने के अनंतर हंसकर उनसे कहा-- "नाथ,अब मेरे जी में जी आया। अब जी कर आपके चरण कमले की सेवा करना सार्थक है । यद्यपि आपने