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प्रकरण--५८
राग में विराग

अनेक माह तक भक्तिपूर्वक भारत के अनेक तीर्थ स्थलों में विचरकर दुनिया का अनुभव और परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त करने के अनंतर पंडित जी घर आ गए हैं । यात्रा का फल भी इन्हें अच्छा मिल गया । प्रियंवदा की मनोकामना पूर्ण हो गई । भगवान् ने उसको पुत्र प्रदान किया। सुखदा के भी गिरते गिरते सँभल जाने पर, उसके पश्चाताप से, उके अटल ब्रत ने और उसके प्रायश्चित्त ने पितृपिंड का भक्षण करने के केवल एक माह के भीतर ही भीतर शुभाश का वीजारोपण कर दिया। वीज' से अकुर, अंकुर से वृक्ष और वृक्ष में पुष्प लगकर फल भी उसे मिल गया । फल भी ऐसा वैसा नहीं । मधुर फल । प्रियंवदा के कमलनाथ और सुखदा के इंदिरानाथ के जन्म देने में केवल तीन मास सत्रह दिन का अंतर था। पंडित प्रियानाथ जो ही घर में कर्ता धर्ता और वह दृद सनातन धर्मावलंबी। गौडबोले ने जब शुभ संतान होने का भार उन पर डाल दिया और जब उनका सिद्धांत ही यह था कि संस्कारहीन बालक किसी काम के नहीं होते, उनके पैदा होने से न होना अच्छा है, ये सचमुच अपने पुरखाओं के तारने के बदले स्वय' नरक में