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पड़कर उन्हें भी घर घसीटते हैं, तब दोनों बालक के लिये सीमंत, पुसवन आदि संस्कार यदि ठीक समय पर शास्त्रविधि से किए गए हो तो आश्चर्य क्या ? थे संस्कार सब ही किए गए और से भी आडंबरशून्य क्योंकि पंडित जी के दिखावट पसंद नहीं, बनावट पसंद नहीं । केवल शास्त्रीय संस्कार ही नहीं वरन् उनकी इच्छा थी कि गर्भधारण करने के समय दंपती के शुद्ध चित हों, उनके मन में विकार न हो, शरीर में दैहिक, दैविक और भौतिक विकार न हों । गर्भधारण करने के समय से स्त्री की इन सब बाते से रक्षा की जाय । वह सदा प्रसन्न बदन, प्रशन मन रहे, कोयले,राख, खपरे और अखाद्य पदार्थ का सेवन न करने पाये । काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय और शोकादि विकारों से रहित रहे तो अवश्य ही संतान उत्तम होगी । पैदा होने के समय से बालक के अंतःकरण में खोटे संस्कार में पैदा होने देने चाहिएं । पंडित जी नें प्रियंवदा के अच्छी तरह समझा दिया, कांतानाथ को अनुक अमुक ग्रंधे का अवलोकन करने का संकेत कर दिया और कुछ पति से और कुछ जीजी से सुखदा में भी जान लिया।

बस इन बातों के पालन करने का फल यह हुआ कि दोनों बालक रूप, गुण संपन्न पैदा हुए । अब सुखदा प्रियंवदा के जीजी कहकर पुकारती है और वह उसे कभी बहन, कभी छोटी और कभी बहुत प्यार में आ जाती है तो सुखदिया