पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१५४

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एक दूसरे को देखकर आँखों में से शत्रुता की चिनगारियाँ फेंकने लगता है। बैल भूख के सारे कल मरते आज ही क्यों न मर जाय उन्हें कोई पानी पिलानेवाला नहीं, जंगल से घास काटकर लानेवाला नहीं । खती सूखती है तो क्या प्रवाह ? चरस चलाकर सोचने का परिश्रम हमसे नहीं होता है । क्या हम किसी के गुलाम हैं जो बारिश में, धूप में और जाड़े में खेती की रखवाली के लिये जंगल में रहें हैं और बघेरा खा जाय तो ? नहीं नहीं ! हमारे फूल से बच्चे बछड़ो़ को चराने नहीं जायेंगे । लगान का तकाजा हैं तो जाने सेवा' ! चाचा जी उसे मालिक बना गए हैं। कोई छाती कुटे तो भले ही कूटे । आज बस से हलुवा पूरी उड़ेगी । बस इस तरह कर गदर मच गया । बाहर के चोर नहीं किंतु घर की घर में चेरियाँ होर्ने लगीं । कोई गल्ला बेचकर रुपया हजम कर जाता है । किसी ने बैल ही बेचकर क्रीमत अंटी में दबाई है । खेत सूख गई । बीज तक वसूल होने का ठिकाना नहीं । लगान की किस्त चढ़े अर्सा हो गया। कुर्की की नैबित आ पहुँची । दो चार बैल मर गए। एक भैस ऐसी मरी जो डेढ़ सौ में भी सस्ती थी । कई एक गाय ठंठ हो गई। पूँजी पसारा बिगड़ गया । एक चूल्हे के सात चूल्हे हो गए ! बेटे अलग, पोते अलग और जो इकट्टे हैं उनके मन अलग, स्वार्थ अलग । और इसलिये "जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहं विपत्ति निदान ?" का फोटो सामने पुकार पुकार कहने

आ० हिं०----१०